आदर्श भरत प्रेम | Adarsh Bhrat Prem

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रीरामका भ्राद-प्रेम १३ लक्ष्मण वनमे गये । अनेक दिया सीखकर और राक्षसोंका विनाश कर मुनिके साथ दोनों भाई जनकपुरमे पहुँचे । धनुष भंग इया | परज्युरामजी आये ओर कोप करके घनुष तोड़नेवालेका नाम- घाम पूछने लगे, श्रीरामने बड़ी नम्रतासे और च्स्मणजीने तेजयुक्त बचनोंसे उनके प्रइनका उत्तर दिया । लदमणजीके कथनपर परझुरामजीको वडा क्रोध आया, वे उनपर दाँत पीसने लगे । इसपर श्रीरामने जिस चतुरतासे माईके कार्यका समर्थन कर चरातृ-प्रमका परिचय दिया, उस प्रसङ्खके पढनेपर हृदय मुग्ध हो जाता है | तदनन्तर विवादकी तैयारी इई, परंतु श्रीरामने खयंबरमे विजय प्राप्तकर अकेले ही अपना विवाह नहीं करा किया। लदमणजी तो साथ थे ही, मरत-शत्नुन्नको बुलाकर सबका विवाह भी साथ ही करवाया | विवाहके अनन्तर अयोध्या लौटकर चारों भाई प्रेमपूर्वक रहने छगे और अपने आचरणोंसे सबको मोहित करने कगे | कुछ समय बाद मरत-श्ुष्न ननिहार चङे गये । पीछेसे राजा दशरथने मुनि वशिष्ठदी आज्ञा और प्रजाकी सम्मतिसे श्रीरामके अति शीघ्र राञ्याभिषेकका निश्चय किया । चारो ओर मड्ल-बधाइयाँ वटे स्गीं ओर राञ्यामिषेककी तैयारी की जाने ङ्गी | वदिष्ठजीने आकर श्रीरामको य्ह हर्ष-संवाद सुनाया | रज्यामिषेककरी वात सुनकर कौन प्रसन्न नहीं होता; परंतु श्रीराम प्रसन्न नीं इए; वे पश्वात्ताप करते इए कहने खगे, (अहो । यह्‌




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