आदर्श भरत प्रेम | Adarsh Bhrat Prem
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
110
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्रीरामका भ्राद-प्रेम १३
लक्ष्मण वनमे गये । अनेक दिया सीखकर और राक्षसोंका विनाश
कर मुनिके साथ दोनों भाई जनकपुरमे पहुँचे । धनुष भंग इया |
परज्युरामजी आये ओर कोप करके घनुष तोड़नेवालेका नाम-
घाम पूछने लगे, श्रीरामने बड़ी नम्रतासे और च्स्मणजीने
तेजयुक्त बचनोंसे उनके प्रइनका उत्तर दिया । लदमणजीके
कथनपर परझुरामजीको वडा क्रोध आया, वे उनपर दाँत
पीसने लगे । इसपर श्रीरामने जिस चतुरतासे माईके कार्यका
समर्थन कर चरातृ-प्रमका परिचय दिया, उस प्रसङ्खके पढनेपर
हृदय मुग्ध हो जाता है |
तदनन्तर विवादकी तैयारी इई, परंतु श्रीरामने खयंबरमे
विजय प्राप्तकर अकेले ही अपना विवाह नहीं करा किया।
लदमणजी तो साथ थे ही, मरत-शत्नुन्नको बुलाकर सबका विवाह
भी साथ ही करवाया |
विवाहके अनन्तर अयोध्या लौटकर चारों भाई प्रेमपूर्वक
रहने छगे और अपने आचरणोंसे सबको मोहित करने कगे |
कुछ समय बाद मरत-श्ुष्न ननिहार चङे गये । पीछेसे
राजा दशरथने मुनि वशिष्ठदी आज्ञा और प्रजाकी सम्मतिसे
श्रीरामके अति शीघ्र राञ्याभिषेकका निश्चय किया । चारो ओर
मड्ल-बधाइयाँ वटे स्गीं ओर राञ्यामिषेककी तैयारी की जाने
ङ्गी | वदिष्ठजीने आकर श्रीरामको य्ह हर्ष-संवाद सुनाया |
रज्यामिषेककरी वात सुनकर कौन प्रसन्न नहीं होता; परंतु श्रीराम
प्रसन्न नीं इए; वे पश्वात्ताप करते इए कहने खगे, (अहो । यह्
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