रावर्ट क्लाइब | Robert Clayib

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रथम अध्याय डे शिक्षा और शासन से क्लाइव का बड़ा हो उपकार दोता.। क्यों कि चह स्वयं शासित हो कर बाल्यावस्था में ही यदि शसन से परि- चित हो जाता, तो पोछे से उसके चालचलन पर जो बड़ा भारी कलङ्क लगाया गया, वह कलङ्क कदाचित्‌ कमी न लगता । इतला होने पर भी क्लाइव के शिक्षागुरुओं और पोषकों की राय क्ताइव के विषय मे बुरी नदीं थी । उसफे आरम्भिक शिक्षक डाक्टर ईटन ने क्लाइव के सम्बन्ध में यह भविष्यद्वाणी कही थी कि, यदि क्ताइव मनुष्य की अवस्था तक पहुँच सका, अर उसको स्वतन्त्रतापूवंक अपनी वुद्धि के अनुसार काम करने का अवसर मिला, तो वह्‌ वड़ा परतापी दोगा और उसके समान वहत कम लोग गणनीय होगे । वास्तव में कालान्तर में हुआ भी ऐसा ही । यद्यपि दोष- शल्य नहीं तथापि ऐसे लोगों की संख्या भारतवर्ष के प्रचलित चंगरेज़ी इतिहासों में बहुत कम है, जो क्लाइव से बढ़ कर प्रतापी हुए हों । अर्थाव पिता का दुत्कारा, निरावलम्ब, निराश्रय, नि- स्सद्दाय एक सामान्य बालक बिना किसी की सहायता के अपने ही उद्योग और अपनी ही चतुराई से मिस्टर क्लाइव से ला क्ाइव हुआ हो । डाक्टर इटन से अनुभवी शिक्षक के पास भी क्ताइव यदि वरावर शिक्षा पाता तो भी सम्भव था फि, कदा- चित्‌ उसके स्वभाव में परिवत्तंन होता, पर ऐसा भी न हुआ । ग्यारह वषं की उमर में क्तादइव मारकेट डेटनकेएकस्कल में -वियाभ्यास के लिए भेजा गया और सन्‌ १७३७ इं० में वह सर्चेन्ट टेलर स्कूल में पढ़ने लगा। थोड़े ही दिनों वाद्‌ २ (




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