कुछ सामान्य रोग | Kuchh Saamaany Rog
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.45 MB
कुल पष्ठ :
92
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
अनिल अग्रवाल - Anil Agrawal
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चंद्रभान शर्मा - Chandrabhan Sharma
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)एनर्जी 5 में दुखती खुजलाहट भरी आंखें बहती या वंद नाक और देर तक आने वाली छीकें हैं । इतालवी शल्य-चिकित्सक लियोनार्दो बोतालो 1519-88 -जिसके रोगियों में संयोग से चार््स नवम और केथरिन दे मेदिसी जैसी महान हस्तियां थीं -के एक रोगी ने अनुभव किया कि गुलाव के फूलों से उसे छींकें नाक की ख़ुजलाहट तथा सिर दर्द पैदा हो जाता था । बोतालो ने सन् 1565 में इन लक्षणों को सावधानी पूर्वक परखा और इस प्रकार वह एलर्जिक व्याधियों में से एक परागज ज्वर का सही विवरण प्रस्तुत करने वाला इतिहास का पहला व्यक्ति वन गया । एक अन्य इतालवी डाक्टर पीत्रो एंट्रिया मेतियोली 1501-1577 का एक रोगी बिल्लियों के प्रति इतना संवदेनशील था कि यदि उसे ऐसे कमरे में भेज दिया जाता जहां बिल्ली हो तो वह बीमार हो जाता था- चाहे विल््ली कहीं छिपकर ही बैठी हो । एलर्जी के कारणों का पता लगाने के लिए बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में एक वहुत ही रोचक व प्रसिद्ध परीक्षण किया गया । इसे प्रॉसनित्ज-कूस्तनर प्रतिक्रिया कहते हैं । स्त्री-रोग एवं प्रसूति-विज्ञानी जर्मन हेनज कूस्तनर 1897-1951 को पकाई हुई मछली से एलर्जी थी । वह खुजली सूजन खांसी छींक व उल्टी से ग्रसित हुए विना पकी मछली नहीं खा सकता था। इन लक्षणों को सामान्य होने में लगभग 12 घंटे लगते थे । जर्मन स्वास्थ्य एवं सूक्ष्मजीवविज्ञानी कार्ल विलहेम प्रॉसनित्ज 1861-19355 के अनुसार एलर्जिक व्यक्तियों के रक्त में एक पदार्थ होता हैं जिसे उसने रिएजिन रिएजेंट की तर्ज पर नाम दिया । यह पदार्थ एलर्जन के संयोग से अप्रिय और अजीव लक्षणों को जन्म देता है । सामान्य व्यक्तियों के रक्त में थह पदार्थ नहीं होता । प्रॉसनित्ज़ का तर्क था कि यदि वह कूस्तनर के शरीर से कुछ सीरम रक्त का पानी वाला भाग अपने शरीर में प्रवेश करा ले तो वह भी पकी मछली के प्रति कम से कम उतने समय तक जब तक रिएजिन उसके शरीर में रहेगा एलर्जिक हो जायेगा । उसने ऐसा ही किया और अगले दिन मछली का कुछ सत्व अपनी बांह में उसी जगह प्रवेश कराया जहां कूस्तनर का सीरम प्रवेश किया गया था । लोगों को यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि उसमें एलर्जी के गंभीर लक्षण उभर आये थे । इस प्रकार रिएजिन सिद्धांत सिद्ध हो गया । ये ही रिएजिन 40 वर्ष वाद इम्यूनोग्लोविन- प्रतिपिंडों के रूप में सामने आयीं । पहले हम यह देखें कि प्रतिपिंड कया होते हैं पाठक विषयांतर के लिए क्षमा करें । जब भी कोई ब्राह्म प्रोटीन शरीर में प्रवेश पा जाता है तो शरीर उसे शत्रु मान बैठता है और उसके विरुद्ध रसायनों का उत्पादन करने लगता है । वे सभी पदार्थ जो शरीर को रसायनों के निर्माण के लिए वाध्य करते हैं प्रतिजन एंटीजन-यूनानी शब्द जिसका अर्थ है मैं उत्पन्न करता हूं कहलाते हैं । अतः सभी एलर्जन वास्तव में प्रतिजन हैं । शरीर जिन रसायनों को इन प्रतिजनों के विरुद्ध उत्पन्न करता है वे प्रतिपिंड एंटीबाडीज-यूनानी शब्द जिसका अर्थ है प्रतिजन- विरोधी पिंड कहलाते हैं । प्रतिपिंड प्रोटीन अणु होते हैं और रक्त में मौजूद रहते हैं ।
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