कनुप्रिया | Knupriya

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Knupriya by धर्मवीर भारती - Dharmvir Bharati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नहीं मेंरे सांवरे,! पमुना के नीछ़े जल में मेरा यह्‌ वेतस छता सा क्रांपता तन-विम्ब, और उसके चारों ओर्‌ स्वरी गहराई का अथाह प्रसार, जानते हों कसा छंगता है-- मानो यह यमुना की सांवली गहरा्र नहीं यह तुम हो जो मारे भावरण दूर यार मे चारों ओर से कण-कण रोम-सेम भपनें ब्यामल प्रयाढ़ अधाह आलिगन में पोर-पोर उप हे 2 क्र त =! कसे हुए हो ! यह्‌ क्या तुम समभते हो घुण्टों-- जल में--में अपने को निहार्ती हूं नहीं मेर॑ सांवर ! १८ . शनुत्रिपा




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