ऐतिहासिक उपन्यासों में कल्पना और सत्य | Ethasik Upanyaso Me Kalpana And Satya

Ethasik Upanyaso Me Kalpana And Satya by बी. एम. चिंतामणि - B. M. Chintamani

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ऐतिहासिक उपन्यासों में हाथ लगाना ठीक नहीं 1 अन्य कुछ ठोगों के सताजुसार इतिहास की कुछ प्रमुख घटनाओं और पात्रों को आधारित करके का पुट देकर आलीशान महू खड़ा करना ही ऐतिहासिक उपन्यास की रचना है । कुछ लेखक ऐतिहासिक वातावरण को लेकर मन गढ़न्त स्वतन्त्र कथानक रखना ही श्रेयस्कर समझते हैं । ऐतिहासिक पात्रों को लेकर उनके साथ खेलवाड़ करना शाष्य नहीं है । इस सिलसिले में गुप्त जी के साकेत की आलोचना करते हुए आचायं शुक्क ने कहा है कि किसी पौराणिक ऐतिहासिक पात्र के परम्परा से प्रतिष्टित स्वरूप को मनमाने ढंग से विकृत करना हम भारी अनाड़ीपन समझते है? । भिक्षरुचिहिं लोकः के आधार पर भिन्न-सिन्न मान्यताओं के अनुयायी अपनी मान्यता को ही सर्वोपरि मानते हैं । इन मान्यताओं की उत्क्ष्टता का सहदय पाठक तथा साहित्यिक कर सकते हैं । आधुनिक रूप में जो उपन्यास उपलब्ध हैं वे हिन्दी के लिये नवीन हैं । इस प्रकार के साहित्य का सजन हिन्दी सें पहले नहीं हुआ था । हिन्दी गद्य साहित्य के द्वितीयोत्थानकाल सम्चत्‌ 9९५० से सम्वत्‌ १९७५ में उपन्यासों की घूम मची । करूपना की सफलता चरित्र की व्यवहारिकता और जीवन की यथार्थता जैसी उपन्यासों में प्राप्त होती है बेसी कविता में नहीं । इसलिये गद्य के विकास के साथ ही उपन्यासों का विकास भी अवश्यंभावी था । इसका अधिक श्रेय बंगला अंग्रेजी सराठी तथा फारसी साहित्य को है। इस काल में अनुवादित उपन्यास खूब निकलने लगे और कुछ मौलिक उपन्यास भी लिखे जाने ठगे। इन अनुवादों से यह लाभ हुआ कि लेखकों को ऐतिहासिक उपन्यासों के ढंग का अच्छा खासा . ै २. हिन्दी साहित्य का इतिहास--आचायं रामचन्द्र शुक्क पृष्-५३७-६ १५. उपन्यासों की पृष्ठभूमि श्र




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