सूर राम चरितावली | Sur Ram Chretawli

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श्री सूरदास जी - Shri Surdas Ji

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सुदर्शन सिंह - Sudarshan Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सूर-रामचरितावली मङ्गटखाच्रण राग विलावल [. | हरिहरि, हरि-दरि खुमिरन करौ । हरि-चरनारयिंद उर धरौ ॥ जय अरु विजय पारषद दोद्‌ 1 विप्र-सराप असुर भप सोद ॥ एक वराह-रूप धरि मारौ । इक नररसिद-रूप संहारी ॥ रावन-ङुभकरन सोद भप । राम जनम तिन क हित प ॥ दसखरथ पति अजोष्या-राव } ताके ग्रह किथौ भआविरभाव ॥ छप सों ज्यौ सुकदेव खनायौ 1 घुरदास' व्यौ ही कहि गाथौ ॥ निरन्तर भरीदरिका सरण करना चादिये जर श्रीहरिके चरण-कमर्छको छदयरम धारण (चिन्तन) करना चाहिये । जय ओर विजय नामके (भगवान्‌ विष्णुके ) दौ पार्षद ( दाया ) ये । ब्राह्मणो ( खनकादि परमर्िर्यो ) के शप्से वे दी असुर हो गये। उनरमेंसे एक ( हिरिण्याक्ष ) को मगवान्‌ने वाराह- रूप धारण करके मारा और दूसरे ( हिरण्यकशिपु ) का सद्दार नसिंदरूप धरण करके किया । वे ही दोनों (फ़िर) रावण और कुम्भकर्णके स्परे उसन्न हुए । उनके उद्धारके लिये ही श्रीरामने अवतार धारण किया । अयोध्या- नरेश महाराज दद्यरथके धर भगवान्‌ श्रीरामक्रा आविर्भाव ( प्राक्स्य ) हुआ । राजा परीक्षितिको श्रीयुक्देवजीने जिस प्रकार यह प्रसद्ध सुनाया; सरदासने उसी प्रकार ( श्रीमट्मागवतके अनुसार ही ) वर्णन करके उसका यान किया है | सु० ० चर १-




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