कर्मग्रन्थ भाग ६ | Karma Granth Part 6

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Karma Granth Part 6  by देवकुमार जैन - Devkumar Jainश्रीचंद सुराना - Shrichand Surana

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श्रीचंद सुराना - Shrichand Surana

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १३ ) स्थानो ओर सत्तास्थानो का स्वतव्र खूप से व॒ जीवसमास, गुणस्थानो भौर मार्गणास्थानो के आश्रय से विवेचन किया गया है ओर अन्त मे उपरमविधि अर क्षपणविधि बतलाई है । कर्मों की यथासभव दस अवस्थाएं होती है । उनमे से तीन मुख्य हैँ-- वन्ध, उदय और सत्ता । शेष अवस्थाओ का इन तीन मे अन्तर्माव हो जाता है । इसलिए यदि यह कहा जाये कि ग्रन्थ मे कर्मों की विविध अक्स्थाओ, उनके भेदो का इसमे सागोपाग विवेचन किया गया है तो कोई अत्युक्ति नही होगी । ग्रन्थ का जितना परिमाण है, उसको देखते हुए वर्णन करने की दौली की प्रदासा ही करनी पढ़ती है । सागर का जल गागर मे भर दिया गया है । इतने लघुकाय ग्रन्थ में विशाल गौर गहन विषयों का विवेचन कर देना हर किसी का काम नही है । इससे ग्रत्थकर्ता और ग्रन्थ--दोनो कौ महानता सिद्ध होती है । पहली और दूसरी गाथा मे विषय की सुचना दी गई है। तीसरी गाथा मे आठ मूल कर्मों के सवेध मग वतलाकर चौथी और पाँचवी गाथा मे क्रम से जीवसमास और गुणस्थानो में इनका विवेचन किया गया है । छठी गाथा में जञानावरण ओर अन्तरायकर्मं कै अवान्तर भेदो के सवेध मग बतलाये हैं । सातवीं से नौवी गाथा के पूर्वद्धि तक ढाई गाथा मे दर्शनावरण के उत्तरभेदो के सवेध भग बतलाये हँ भौर नौवी गाथा के उत्तराद्धं मे वेदनीय आयु मौर गोच्र कमे के सेध भगो के कहने की सुचनामात्र करके मोहनीय के मग कहने की प्रतिज्ञा की गई है । दसवी से लेकर तेईसवी गाथा तक मोहनीयकर्म के और चौबीसवी से लेकर बत्तीसवीं गाथा तक नामकर्म के बधादि स्थानों व उनके सवेघ भगो का विचार किया गया है । इसके अनन्तर तेतीसवी से लेकर बावनवी गाथा तक अवान्तर प्रकृतियो के उक्त सवेष मगो को जीवसमासो भौर गुणस्यानौ मे घटित करके वतलाया गया है । त्रेपनवी गाथा मे गति आदि सायेंणाओ के साथ सत्‌ भादि आठ अनुयोगद्वारो में उन्हें घटित करने की सुचना दी गई है । इसके अनन्तर वण्ये विषय का क्रम बदलता है । चौवनवी गाथा में उदय से उदीरणा के स्वामी की विशेषता को बतलाने के बाद पचपनवी गाथा में ४१ प्रकृतियां वतलाई है, जिनमे विशेषता है । पञ्चात्‌ छप्पन से उनसठवी गाथा तक




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