भीष्म | Bhishm

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द्विजेन्द्रलाल राय - Dvijendralal Ray

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पं. रूपनारायण पाण्डेय - Pt. Roopnarayan Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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` हृदय । ] पहला अंक । ५ 0 ज क न णी मी मीर ¢ सखी-अच्छा हमने माफ किया । अब घर चलो । सत्यव०---तुम मुझे प्यार करती हो ? १ सखी --८ हँसकर ) प्यार करती हैं ?--कौन कहता है ? २ सखी---प्यार करती हैं £ बिलकुछ नहीं--जरा भी नहीं । ३ सखी--तुमको हम सब दुश्मनकी नजरसे देखती हैं । ४ सखी--हम प्यार करती हैं या नहीं, यह पूछ रही हो १ सत्यबती--मैं सच कहती हूँ, अगर प्यार करती हो, तो अब इस पापिनी घीवर-कन्यासे घृणा--घृणा करो । १ सखी---यह तुम क्या कह रही हो 2 सत्यव ०--तुम क्या जानती हो कि मैं कौन हूँ ! ३ सखी--जानती हैं--सत्यवती हो । सत्य०--और कुछ जानती हो ! ३ सखी--तुम घीवरराजकी कन्या हो और तुम्हारी जवानी सदा बनी रहेगी । सत्य०--और कुछ जानती हो ! ४ सखी--बस, और तो कुछ नहीं जानतीं । सत्य०--तो फिर तुम कुछ नहीं जानतीं, और न कभी जानोंगी ।---जा ओ प्यारी सखियो, सब घर चली जाओ, मैं नहीं जागी १ सखी- क्यो सत्य ०--यह नहीं वतार्डगी | २ सखी-- क्यों ९ सत्य०--इस “क्यो का ठीक उत्तर कभी नहीं पाओगी | जाओ घर ठौट जाओ । में नहीं जागी । मेरे घर द्वार कुछ नहीं है ।




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