राजस्थान का इतिहास | Rajasthan Ka Itihas
श्रेणी : इतिहास / History, भारत / India
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14.34 MB
कुल पष्ठ :
366
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ऐसा कोई राज्य नहीं जिसकी अपनी थर्मोपली न हो भौर ऐसा कोई नगर नहीं जिसने अपना लियोनिडास पैदा नहीं किया हो । टॉड का यह कथन न केवल प्राचीन और मध्ययुग में वरन् आघुनिक काल में भी इतिहास की कसौटी पर प्राय खरा उतरा है। ८वीं दाताव्दी में जालौर के प्रतिह्ार और मेवाड़ के गहलोत अरब-आक्रमणों की चाढ़ को न रोकते तो सारे भारत में इस्लाम की तूती वोलती नजर गाती । मेवाड़ के रावल जेतसिंह ने सन् १२३४ में दिल्ली के सुलतान इल्तुतमिस और सन् १२३७ में सुलतान वलवन को करारी हार देकर राजस्थान को यवनों के आधिपत्य से वचाया 1 सन् १३०३ में सुलतान मगलाउद्दीन खिलजी ने एक विशाल सेना के साथ मेवाड़ की राजघानी चित्तोड़ पर हमला किया । चित्तौड़ के इस प्रथम झाके में हजारों वीर और वीरांगनाओं ने मातृथ्नुमि की रक्षा हेतु अपने-आपको न्यौछावर कर दिया । पर खिलजी किले पर अधिकार करने में सफल हो गया । इस हार का वदला सन् १३२६ में राणा हमीर ने दिल्ली के सुलतान मुहम्मद तुगलक की विशाल सेना को हराकर चित्तौड़ पर मेवाड़ का पुन अधिकार जमाकर । १४वीं शताब्दी के मध्य में मेवाड़ का राणा कुंभा उत्तरी मारत में एक प्रचंड झाक्ति के रूप में उभरा । उसने गुजरात मालवा और नागौर के सुलतानों को अलग- अलग गौर संयुक्त रूप से हराया । सन् १५०६ में राणा सांगा ने मेवाड़ की वागडोर संभाली । सांगा वड़ा महत्वाकांक्षी था भर भारत में हिंद साम्राज्य की स्थापना करना चाहता था । सारे राजस्थान पर अपना वर्चस्व स्थापित करने के वाद उसने दिल्ली गुजरात और मालवा के सुलतानों को संयुक्त रूप से हराया । सन् १५२६ में फरगाना के शासक उमरकेख मिर्जा के पुत्र वावर ने पानीपत के मैदान में दिल्ली के सुलतान इब्राहीम लोदी को हराकर दिल्ली पर अधिकार कर लिया । सांगा को विद्वास था कि वावर भी अपने पूर्वज तैमुर लंग की भांति लूट-खसोट कर अपने वतन को लौट जाएगा । पर सांगा का अनुमान गलत सावित हुआ । यही नहीं वह सांगा से मुकावला करने के लिए आगरा से रवाना हुआ । सांगा ने भी समूचे राजस्थान की सेना के साथ आगरा की ओर कूच किया । वावर और सांगा की पहली भिड़ंत बयाना के निकट हुई । वावर की सेना हार कर भाग खड़ी हुई चावर ने सांगा से सुलह करनी चाही । पर सांगां आगे बढ़ता ही गया । १७ मां १४५२७ को खानवा के मैदान में दोनों पक्षों में जमकर युद्ध हुआ । मुगल सेना के एक वार तो छक्के छूट गए । पर इसी वीच देश के दुर्भाग्य से सांगा के सिर पर एक तीर लगा जिससे वह मुद्धित होकर गिर.पड़ा । उसे युद्ध-क्षेत्र से हटाया जाकर चसवा ले जाया गया । इस दुर्घटना के साथ ही लड़ाई का पासा पलट गया । वावर विजयी हुआ गौर इस प्रकार देश में हिंदू साम्राज्य स्थापित करने का यह अंतिम भ्रयत्न विफल हो गया । वावर भारत में सुगल-साम्राज्य की नींव डालने में सफल हो गया । ः खानवा के युद्ध ने मेवाड़ की कमर तोड़ दी । यही नहीं वह वर्षों तक गृह- कलह का शिकार वना रहा । अब राजस्थान का नेतृत्व मेवाड़ के शिक्ौदियों के हाथ राजस्यान पर विहंगम दृष्टि / ३
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