बीतक | Bitak

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देवकृष्ण शर्मा - Devkrishn Sharma

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माताबदल जायसबाल - Matabadal Jayasabal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६४ बीतक उस झ्विदेकी ने हवसा में इन्हें बन्दीग्रह५७ में रख दिया । इसी समय प्रहमदाबाद के सुबेदार कुतुबख५८ [कुतुबहीन खान ] ने' जामनगर पर चढाई कर दी । जाम वजीर इन्हे बंदीग्रह में छोड़ अहमदाबाद चला गया वही बदीग्रह में झनेक बानियो की रचना हुई । एक साल बाद लौटने पर वजर ने झपनी भूल स्वीकार की और प्राणनाथ को मुक्त कर उनसे क्षमा मागी । सवत्‌ १७१६ मे आप जूनागढ़ पधारे भौर वहा २ वषं रहकर एक गाव बसाया । वही हरजी व्यास नामक्‌ एक विद्वान पडत को शस्त्राथं मे हराकर अपना शिष्य बनाया । वहां से 'नौतनपुरी' [जामनगर] लौट आए रौर पुन. जामनगर की दीवानगीरीःका भार ले लिया । इसी समय सवत्‌ १७१९ मे कुतुबखान ५६ ने फिर जामनगर पर चढ़ाई कौ। सूबेदार को समाने के लिए भजाम वजीर के सथ प्राणनाथ भी संवत्‌ १७२० मे अ्रहमदाबाद (गुजरात) गए । वही हे कुछ ऐसी घटना घटी कि झापने लौकिक कायं त्यागकर पुणंरूप से धमं जागरण का कायं भ्रपने सिर पर लिया । म्रहमदाबादसे शी प्राणनाथ जी दीव६० बन्दर (ङ्य,) पधारे श्रौर वहा साथी जैराम६१ को जागृत किया । श्र लोग दीक्षित होकर साथी बने । नगर मे कीतंन की हलचल मची जिससे कुछ ईर्ष्यालुग्रो ने नगर के ¶करगियो'६२ के पास छगली करनी चाही, किन्तु एक सज्जन के समाने पर दरबार मे पहुंच जाने पर भी च्रुगल' लौट आया, किन्तु फिर फिरगियो के भय से .सायियोः प्रे खलभल' पड़ गई भौर सब इधर उधर “छिप गए' । इस समय जेरामः को छोडकर समस्त साथियों ने श्री मेहेराज का साथ छोड दिया । “सुन्दर साथ एकत्र करने के उदक्य से भराणनायः जी दीव बन्दर से पोरबन्दर, पाटण होते हए कच्चदेर मे मडई [मांडवी] में साथी प्रागमल के यहा पधारे । वहा जागरण कायं करते हश 'कपाइए” गाव में हरवश ठाकुर को “जागृत” कर भोजनगर मे बृन्दावन (हरिदास जी के पुत्र) के यहा रहे) धर्मोपदेश देते हृए नलिए होकर 'ठट्ठानगर' में नाथा जोशी के यहा १२ दिन तकं ठहरे । फिर वहां से लाठी बदर होकर ¦ 'मस्कत' (अरब मे) बदर जाने के लिए नाव पर सवार हुए; किन्तु १७ दिन तक 'तोफान” रहने के कारण पुन: ठट्ठानगर लौट श्राए । यही एक कबीर धर्मावलंबी साधु “चितामन' से लास्त्रार्थ ५७-बीतक मे इसी को प्रबोधपुरी या प्रमोदपुरी कहा गया--वही भ्रनेक बानियो की रचना हुई । ला० बी० प्र० १३ १४१९ ५८-सवत सत्रं बारोतरे । भई कुतुबखान की महुम । जाम वजीर गए तिनपर । सडभड पडी इन कोम । १५४२ ब प्रमोधधुरी मिने । ,०,.,...००.००... ४३ ५६-सवेत सत्र ले उनईसें । देस पर श्राया कुतुबखाँन । उत इलहाम हुभा । थी ब्रह्मास्रिष्ट पेहेचान । १६,६४५ ६०-संवत सत्र बावीसे । दीव पधारे श्री राज । । दोए बरस तहां रहे । सब पूरे मनोरथ काज । ला० बी० प्र० १६ दै१-तब गुजरात में श्राए दीव में । भाई साथी जेराम के घर । १८३ [ साधी जेराम ने भी एक बीतक लिखी है। ] दैरेलडुगल केतेक दिन पीछे । गया फिरगी पास । प्र० २०६ ” ” फिरगी ऐसे जालिम । सुनत तुमे मुख बेन । प्र० २०१४




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