धर्म्म और जातीयता | Dharmm Or Jatiyta
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
147
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
अरविन्द घोष - Arvind Ghosh
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देवनारायण द्विवेदी - Devnarayan Dwivedi
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पणवी तिपतक “
सष शक्तियाँ प्रवि मोर विकसित दोकर विस्तार झऔर श्रपनी
प्रवृत्ति सकल देोनेके क्तिये वथाथं साग ढूंढ रही हैं।
कष्टिन-तपस्या, उशाकाश्वा योर शरेषठ-कम, शाक्तिस्फुःरणके लकय
हैं। यह झार्य-जाति जिस समय तपस्वी, उन्चाकाक्षी श्रीर
मसहत्त कस -अयासी हो जायगी, उस समय समम लेना दोगा
कि संसारकी उत्नतिके दिनका झप्सम्स हो पया, श्रव धमः
` विरोधिनी सक्षसी शत्तिकरा नाश श्रौर देव-भाक्तिक्रा पुनस
त्थास अनिवार्य हैं । इसलिये इस प्रकारकी शिक्षा भी श्राघ्ुनिक
समयके लिये किशिप प्रयालनीय 2 !
युग-धभर' शौर जाति-धम' दीकं रहनेखे जगन्मय ननातन
धरम जिंदा किसी प्रकारकी रकाघटके प्रचारित श्रौर अवुषटित
होगा |. विधाताने पहलेंसे जो कुछ निरि किया रै नथा
जिस सम्बन्ध शविष्योक्तियाँ शास्त्रीम लिखी हैं, वे मां
कार्थ-रूपमे परिणत दे जायँगी । सारा संसार आय देशोत्पन्न
बह्मन्ञानि्योके समीर क्तास-प्रः ओर शिश्वग्भथी हक मारन
भूमिको तीर्थं मानेन अर अपना भस्तक सुकाकर उसका
प्रघान्व स्वीकार करेगा! पर वह दिने तमी आवेगः, जब भागत-
चासी जागे सौर उनम आयं -भावकः। नवीत्थःन षिण रोषा १
ल
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