हमारी स्वतंत्रता कैसी हो | Hamari Savtantrata Kaisi Ho

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Hamari Savtantrata Kaisi Ho by अरविन्द घोष - Arvind Ghoshदेवनारायण द्विवेदी - Devnarayan Dwivedi

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देवनारायण द्विवेदी - Devnarayan Dwivedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हमारी स्वतंत्रता कैसी हो १५ थी ; राजतंत्र और प्रजातंतरका क्रमागत भाग्य-विपयेय भी हुभा था। भारतकी किसी-किसी जातिमें प्रजातंत्र ही अन्ततक विजयी रहा और विशेष दक्षताके साथ राष्ट्रका शासन चलाता हुआ सेकढ़ों वर्षोंतक अप्लुएण बना रहा। वे प्रजातंत्र राज्य कहीं तो लोकतांन्रिक सभाके द्वारा और कहीं मुख्यतांत्रिक परि- षदके द्वारा शासित होते थे । दुःखकां विषय ই कि इन सब भारतीय प्रजातंत्रोंके संगठनकी प्रणाली हमलोग बहुत ही कम्र जानते हैं ओर उसके अन्द्रूनी इतिहाससे हम लोग बिलकुल ही अनमिज्ञ हैं। फिर भी उनकी शासन-प्रणालीकी उत्कषेता तथा उनकी सामरिक व्यवस्थाकी दक्षताकी अत्यधिक ख्याति समूचे भारतमें व्याप्त थी, इस विषयमें अकाव्य प्रमाण पाये जाति है । बुद्धकी एक कथा प्रचलित है, उन्होने कहा था कि जितने दिनोंमें प्रजातंत्र राज्य ठोक तौरसे परिचालित होगा, उतने दिनोंमें एक छोटा राष्ट्र भी मगध-राजवंशकी उद्धत सामरिक शक्तिको रोक सकेगा । इस मतके समर्थनमे भौर भी वाक्य पाये जाते है । भारतके प्राचीन राष्ट्रनीतिक प्रन्थकारों- की रचनाओंमें यह उल्लेख है कि--अजातंत्र राष्ट्रके साथ मैन्नी स्थापित करनेसे राजालोग राजनीतिक और सामरिक मामलोंमें जेसी सहायता पा६वेंगे, वैसी भौर कहींसे भी नहीं पावेंगे ; प्रजातंत्रको दमन करनेका उपाय युद्ध नहीं है ; क्योंकि उनके साथ युद्धमें ऋृतकाये होनेकी आशा अत्यन्त अल्प है। उनको दमन करनेके लिए कूट राजनीतिका आश्रय लेना पड़ेगा, उनके राष्ट्रतश्रके एकता और दक्षताको जड़से नष्ट कर देना दोगा- नदीं तो उनको दमन करना आसान काम नी होगा ।




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