रुपए की कहानी | Rupae Ki Kahani

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Book Image : रुपए की कहानी  - Rupae Ki Kahani

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घनश्याम दास बिड़ला - Ghanshyam Das Vidala

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पारस नाथ सिंह - Paras Nath Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रुपए की कहानी दे चलण की जरूरत क्या है. श्र कंसे-कंसे इसकी व्यवस्था में प्रगति हुई । सिक्के की आवश्यकता एक पल के लिए हम यह कल्पना करें कि एक ऐसा समाज हे जिसमें सिक्का हे ही नहीं; ग्रौर फिर है 1 अपने मन में एक एेसा नक्शा खेचेंजो हमें यह बताये कि बिना सिक्के के उस समाज का रोजमर्रा की खरीद-फरोख्त श्र लेन-देन का व्यवहार केसे चलेगा । मान लीजिए कि ऐसे बेसिवके के समाज में एक मनुष्य के पास कुछ अ्रन्न है और कुछ नए वस्त्र भी हे । दूसरा उसका पड़ोसी है । उसके पास कुछ कपास है, और कुछ भूसा भी हे । एक तीसरे पड़ोसी के पास घी हैं, श्र कुछ तेल भी है । ग्रब ये तीनों आदमी सुबह उठकर कुछ तरकारी श्रौर दूध खरी- दने के लिए निकलते हे ग्रौर दूध ग्रौर तरकारी बेचनेवालों के पास पहुंचते हें । दूधवाले को एक ने कहा कि मेरे पास कुछ कपड़ा है, उसे तुम ले लो भ्रौर बदले मे मुभ्के दूध दे दो । इसी तरह तरकारी बेचनेवाले से इसने कहा कि कुछ तरकारी दे दो और बदने में मुफसे कुछ श्रन्न ले लो । पर तरकारी बेचनेवाले और दूध बेचनेवाले दोनों को न कपड़ा चाहिए, न भ्रन्न चाहिए । इसलिए वे या तो कपड़े या भ्रन्न से तरकारी श्रौर दूध का बदला करने से इन्कार करेंगे, या दूध श्रौर तरकारी के बदले में इतनी ज्यादा मिकदार अन्न श्रौर कपड़े की मागेंगे कि शायद ये सज्जन बिना दूष और तरकारी के रहना पसन्द करेगे । नतीजा यह होता है कि बिना दूध धौर तरकारी के ही ये सज्जन वापिस घ'र लौट ग्राते हें । दूसरे पड़ौसी के पास कुछ कपास श्रौर भूसा है । दूध बेचनेवाले को भूसे की जरूरत हे, इसलिए भूसे से दूध का बदला करने पर तो वह राजी हो जाता हैं; पर कपास उसे नहीं चाहिए । इसलिए कपास पड़ोसी के पास ज्यों-की-त्यों श्रनचाही वस्तु के रूप में पड़ी रह जाती है । इसके बाद ये तीनों पड़ोसी कुछ मसाला खरीदने निकलते हैं । मसाले- वाले को कुछ कपड़े की जरूरत है। इसलिए प्रथम सज्जन का कपड़ा केकर बहू बदले में उसे मसाला दे देता हूं । पर उसे भ्रन्न नहीं चाहिए । इसलिए




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