महात्मा बुद्ध | Mahatma Buddha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
184
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सहामानव बुद्ध ६
श्रपनी श्ित्ताका क्या सुख्य प्रयोजन है, इसे बुद्धने इस तरद
वतलाया दै--
“भिन्तुखो, यह ब्रह्मचयं (भिन्तुका जीवन) न लाम-सत्कार-प्ररमारे
लिये है, न शील (सदाचार) की प्राप्तिके ल्ियेः न समाधि प्राप्तिके
लिये, न जान-दर्भन के लिये है । जो श्रट्धट चित्तकी मुक्ति है; उसी
के लिये यह ब्रह्मचर्यं है, यदी खार दै, यही उसका शन्त द|
बुद्धके दार्शनिक विचारो को देनेसे पूर्वं उनके जीवने वाकी
व्शकों समाप्त कर देना जरूरी हे ।
सारनाथ मे श्रपने धर्मका प्रथम उपदेश कर; यहीं वर्पा बिता;
वप्रकि न्त मे स्थान दछोडते हुये प्रथम वार चार मासों मे हुये थापने
साठ शिष्यो को उन्दने इस तरह संबोधित किया-
“भिन्तुग्रो, वहुन जनों के हितके लिये, वहुन जनोकर सुखके लिये
लोकपर दया करने के लिये, देव-मनुष्यों के प्रयोजन-हित-सुखते लिये
विचरण करो । एक साथ दो मत ॒जश्रो | मे भी--उस्वेला सेनानी
आम मे--धर्म-उपदेशके ल्यि जा रहा हूं ।'
इसके वाद ४४ वप्रं बुदूध जीवित रदे । इन ४४ वेके वरसात के
तीन मासोको छोड़ वह वरावर विचरते, जहा-तहा खदरते, लोगों को
्रपने धर्म शरोर दशेनका उपदेश करने रदे । बुद्धने बुदुधत्व प्राप्तिके
वादकी ४४ वरसातों को निम्न स्थानों पर विताया । (ग्र॑सु-°त्र
क०-२।४।५)
स्थान ३० पर
विनी में जन्म ६५३
वोधगया मे बुद्धत्व ५२८
१. ऋप्रिपतन (सारनाथ) ~
२-४. राजगृह ५२७ २५
५. वैशाली
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