महात्मा बुद्ध | Mahatma Buddha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सहामानव बुद्ध ६ श्रपनी श्ित्ताका क्या सुख्य प्रयोजन है, इसे बुद्धने इस तरद वतलाया दै-- “भिन्तुखो, यह ब्रह्मचयं (भिन्तुका जीवन) न लाम-सत्कार-प्ररमारे लिये है, न शील (सदाचार) की प्राप्तिके ल्ियेः न समाधि प्राप्तिके लिये, न जान-दर्भन के लिये है । जो श्रट्धट चित्तकी मुक्ति है; उसी के लिये यह ब्रह्मचर्यं है, यदी खार दै, यही उसका शन्त द| बुद्धके दार्शनिक विचारो को देनेसे पूर्वं उनके जीवने वाकी व्शकों समाप्त कर देना जरूरी हे । सारनाथ मे श्रपने धर्मका प्रथम उपदेश कर; यहीं वर्पा बिता; वप्रकि न्त मे स्थान दछोडते हुये प्रथम वार चार मासों मे हुये थापने साठ शिष्यो को उन्दने इस तरह संबोधित किया- “भिन्तुग्रो, वहुन जनों के हितके लिये, वहुन जनोकर सुखके लिये लोकपर दया करने के लिये, देव-मनुष्यों के प्रयोजन-हित-सुखते लिये विचरण करो । एक साथ दो मत ॒जश्रो | मे भी--उस्वेला सेनानी आम मे--धर्म-उपदेशके ल्यि जा रहा हूं ।' इसके वाद ४४ वप्रं बुदूध जीवित रदे । इन ४४ वेके वरसात के तीन मासोको छोड़ वह वरावर विचरते, जहा-तहा खदरते, लोगों को ्रपने धर्म शरोर दशेनका उपदेश करने रदे । बुद्धने बुदुधत्व प्राप्तिके वादकी ४४ वरसातों को निम्न स्थानों पर विताया । (ग्र॑सु-°त्र क०-२।४।५) स्थान ३० पर विनी में जन्म ६५३ वोधगया मे बुद्धत्व ५२८ १. ऋप्रिपतन (सारनाथ) ~ २-४. राजगृह ५२७ २५ ५. वैशाली




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