मरघट की ओर | Marghat Ki Or

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Marghat Ki Or  by राम नारायण अग्रवाल -Ram Narayan Agrawal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सरघट की छोर ७ र विश्वास करो । उसने ऐसा ही किया पर उसे श्र फेडोरोवना! दोनों फो ही बात श्रच्छी न लगी । “परे साथ श्रादये, संस्कार होने से पहले मैं झापसे कुछ बात करना चाहती हूँ,” विधवा के कहा, “मुझे अपना हाथ दो 1 पीटर इचानोविच ने उसे अपना हाथ दे दिया और ये श्रन्दर के कमरे सें चलते गये, श्वार्ज फे सामने होकर, जिसका सुह मानो यह कहने के लिये खुला हुभ्रा था : “इस तरह तो हमारा ताश का खेल ही ब्रेमज़ा हो गया । बुरा न सानिये यदि हम किली और के साथ खेल लें ।? पीटर इवानोविच ने श्रौर भी गहराई तथा उदासी से साँस ली श्रौर आस्कोष्या फोडोरोवना ने उसके हाय को कृतशता से दबाया ! डादन्ग रूम में पहुँचने पर एक घुधली बत्ती जला कर वै वैड गये--यद एक 'सोफे पर और पीटर इवानोविच एक नीचे, सुलायम, स्प्रिंगदार कुशन पर । 'आस्कोब्या फौडोरोवना ने उसे दूसरी सीट पर बैठाने के लिये कहना चाहा किन्तु यह सोचकर कि इन परिस्थितियों में उसे चुप रहना चाहिये, उसने अपना इरादा बदल दिया । कुशन पर बैठते हुये, पीटर इवानोधिच को स्मरण श्राया कि किस तरह इवान इक्तिच ने दसं कमरे को सजाया था श्नौर इस सम्बन्ध मं उससे सलाह भी ली गई थी । सारे कमरे में फर्नी- “चर पढ़ा था । जैसे ही वह सोफे तक गई, ' विधवा के काले शाल का फीता मेज के निकले हुए सिरे से उलक गया । पीटर इवानोविच इसे निकालने के लिये उठा श्र उसके कुशन की सिग्रग भी उछल गई । विधवा के स्वयं 'फीता निकाल लेने पर वह झपनी सीट पर बैठ गया । लेकिन विधवा अभी पूरी तरह फीवान लिकाल पाई थी. । झत्त: चह फिर उठ खड़ा हृष्मा । जब यह सब हो चुका तो विधवा ने एक साफ रूमाल निकाला श्रौर रोना शुरू कर दिया । शाल श्रौर ऊुशन के कगड़े ने पीटर इवानो- चिच का मस्तिष्कं कुदं शान्त कर दिया था, श्रौर च श्रपने चेदरे पर गम्भीर मुद्रा बनाये यैडा था । इवान दृक्लिच फ रसोदये ने शकर इस




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