अपराजितेश्वर शतक | Aparajiteshvar Shatak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
542
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about देशभूषण जी महाराज - Deshbhushan ji Maharaj
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(( ९)
भरतेश वैभव हे ।.जो चक्रवर्ती सन्नादू भरत के वैभव और
“आरत भूमि का गुणगान करने वाला ` अलौकिक महाकाव्य दै ।
परमपूज्य तपोनिधि आचार्यं देशभूषणजी महाराज ने प्रथम और
दूसरे प्न्थ रत्त का राष्ट्रभापा में अनुवाद करके दक्षिण और
चत्तर प्रात के सम्बधों को त्यन्त मधुर बना दिया है । भारतदेश
की सांस्कृति एकता क्रितनी गददरी है, यह इसके अवलोकन से
लोगों के दिलों में स्पष्ट हो जायगी | दक्षिण और उत्तर भारत
को जोड़ने में इससे वढ़ी सद्दायता मिलेगी |
प्राचीन काल में दक्षिण भारत मँ अनेक प्रतिभासम्पन्न
दिग्गज और धुरन्धर विद्वान हुये जिन्होंने सस्कृत प्राकृत, तामिल
और कर्नाटक भाषा में अपार सादित्य लिखा ।
संस्कृत और प्रात भाषा का बहुत कुछ साहित्य प्रकाश में
भी झा गया दै। लेकिन कर्नाटक 'और तामिल साहित्य अभी
चक भलो प्रकार प्रकाश में नददीं ्ञाया है। 'छाचाय महाराज ने
जो महत्वपूरण कदम इस श्रोर उठाया है वह सभी प्रकार से
-श्लाष्यनीय है । एक समय था जब कि भारतवर्ष की विभिन्न
दिशाओं नगरों और श्राश्रमों में हज़ारों निर्मन्थ तपत्वियों और
'यतिय्ों का समूह पैदल बिहार करता हुआ गॉव और शहरों में
'मोक्ष मार्ग का संदेश देता था। वे यतीश्वर जिनकी दिशायें
अम्बर ह, तपश्रौर समाधि ही जिनका धनुष दै, क्षमादि दश
धम जिनकी ` भत्यंचा है ! महान्न हयै जिनका वाण है, त्रत
समिति-गुप्ति जिनका कवच है, यथाजात बालक ॐ सदश नग्नः
User Reviews
No Reviews | Add Yours...