भद्रबाहु - संहिता | Bhadrabahu - Sanhita
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
616
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)16 भद्बाहुसंहिता
लेन ज्योतिष का विकास
जैनागम की दृष्टि से ज्योतिष शास्त्र का विकास विद्यानुवादाग भौर परिः
कर्मों से हुआ है । समस्त गणित-सिद्धान्त ज्योतिष परिकर्मों मे अकित है और
अष्टाग निमित्त का विवेचन विद्यानुवादाग में किया गया है । षट्खण्डागम
वला टीका मे रौद्र, श्वेत, मत्र, सारभट, दत्य, वैरोचन, वैश्वदेव, अभिजित्,
रोहण, बल, विजय, न त्य, वरुण, अर्य॑मन् मौर भाग्य ये पन्द्रह मृहृत्तं भए ।
मुहूर्तो की नामावली वीरसेन स्वामी कौ अपनी नही है, किन्तु पुर्व परम्परा से
श्लोकों को उन्होंने उद्घृत किया है । अतः मृहूत्तं चर्चा पर्याप्त प्राचीन है । प्रन
व्याकरण में नक्षत्रों के फलों का विशेष ढंग से निरूपण करने के लिए इनका कुल,
उपकुल और कुलोपकुलो में विभाजन कर वणेन किया है! यहु व्णेन-प्रणाली
सहिता शास्त्र क॑ विकास मे अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। बताया गया है
कि“--“धनिष्ठा, उत्तराभाद्र पद, अश्विनी, कृत्तिका, मृगशिरा, पुष्य, मघा,
उत्तरा फाल्गुनी, चित्रा, विशाखा, सुल एवं उत्तराषाढ़ा ये नक्षत्र कुलसज्ञक,
श्रवण, पूर्वाभद्रपद, रेवती, भरणी, रोहिणी, पुनवेसु, आश्लेषा, पूर्वाफल्गुनी,
हस्त, स्वाति, ज्येष्ठा एव पूर्वाषाढा ये नक्षत्र उपकरुल-सज्ञक आर अभिजित्
शतभिषा, आद्रा एव अनुराधा कुलोपकरुल सज्ञक है ।” यह् कुलोपकुल का विभाजन
पूर्णमासी को होन वाले नक्षत्रौ के आघार पर क्रिया गया है । अभिभ्राय यह है कि
श्रावणं मास के धनिष्ठा, श्रवण ओर अभिजित्, भाद्रपद मास के उत्तराभाद्रपद,
पूर्वाभद्रपद ओर शतभिषा, अश्विन मास के अश्विनी भौर रेवती, कालिक भास
के कृत्तिका और भरणी, अगहन या मागशीषं मास के मृगशिरा मौर रोहिणी;
पौष माष के पुष्य, पृनवधु ओर आद्रा, माव मासके मघा और आश्लेषा, फाल्गुनी
मास के उत्तराफाल्गुनी भौर पूर्वाकास्गुनी, चैत्र मास के चित्रा मौर हस्त,
वैशाख मास कं विशाखा भौर स्वाति; ज्येष्ठ मास के ज्येष्ठा, मूल मौर अनुराधा
एव आषाढ़ मास के उत्तराषाढा ओर पूर्वाषाढा नक्षत्र बताये गये है । प्रत्येक मास
1 देखें--घवला टीका, जित्द 4, पु०् 318 ।
2 ता कहते कुला उवबकुला डुलावकुला जहिनेति वदेज्जा । तत्थ खलू इमा बारस कुला
बार्स उपकुला चत्तारि कुलवकुला पण्णत्ता । बारसन्मला त जहा--ष्ठणिट्ढा कुल, उत्त
भददवयाकुल, अस्सिगी कुल, कत्तियाकुल, मिगसिरकुल, पुस्सोकुल, महु कुल, उत्तराफमगुणीकुल
चिताकरल, विसाहाङ्कल, मूलोकुल, उत्तरासाणकुन ॥ बास उवकुला पण्णत्ता त जहां सबणों
उबकुल, पुव्वभदवया उपकुल, रेवती उवकुल, भरणि उवकुल, रोहिणी उबकुल , पुणव्वसु उबकुल,
असलेसा उबकुल, पुब्चफरगूणी उवकुल, हत्थो उवकुल, सानि उवकुल, जेट्ढा तमन पुष्वासाढा
उवकुल ॥ चत्तारि कुलावकुल पण्णत्ता त जहा--अभिजिति कुलावसनभिसथा कुलावकुल कुल,
अईछुलबडुल अगु रहा कुलावकुल ॥---पु० का० 10, 5 थी
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