ताराशंकर वंद्योपाध्याय दुनिया एक बाजार | Tarashankar Vandhopadhyay Duniya Ek Bajar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सकेगी । टिक्ली को चुनरिया को तरह वाप वा डर नहीं है। उसकी मा सव कुछ जानती है 1 उवे सवते ज्यादा खुनी हुई । रात का गाटक भ्रानि पर यह दूर से ही देख लेगी श्रोर कही चुनरिया उसके गाहक को वहका ले तो उससे मंगड सकेगी । हाट मे जैसे कूडा-वघरा एक श्रोर ढेर हावर पडा रहता है, ये भी हाट म ही जमी पढ़ी हैं । यही इनकी पदाइश हुई, यही मौत होगी । इन लोगा म झादी-ब्याह की दसी बड़ी कठिन पावदी नहीं है। एक दिन एकाएक टिक्ली की माग मे सिंदूर देमक उठा 1 किसने दिया--किसीने इमकी खोज-खदर नही ली । मूवनपुर की इस हाट म प्रचानक एक दिन रूपवती मालती झा पहुंची । भरी जयानी । उन्नौस-वीस साल कौ क्वारौ लडकी । भरजीव लडकी 1 वदन प्रर सादी कमज, टक्टक रगीन कोर की साड़ी, कमर पर एक टाकरी । एक श्रघबूढी श्रीरत वे सिर पर दूसरी एक टोकरी रखकर बह हाट के श्रदर पठी श्रौर ताती के छज्ज के सामने खडी होकर बोभी घरनीदास की दुकान कौन-सी है वता सकते है ? सुरभि गांव का घरनी दास--तात के कपडे बेचते हूं । हाट मे उस समय भीट माड कम थी । चेचनेवाला वा माना सुरू ही हुआ था । सीदा-पाती खरीदनेवालो को मोड नहीं भाई थी । फिर भी जो थोटे से लोग श्राए थे, सबका मुह उस खञ्ज कौ तरफ घूम गया । एक छोकरा--कमर पर खड़ी एक लाठी; उस पर श्रास-सा बनाता हुमा श्राडा भ्राडा पडा एक डडा, उसपर भूलता हुआ रंग विरगा फीता, वार, बाल म खासने के कांटे, हेयर क्लिप । हक लगाकर बेचा करता है-- दो-दो श्रना, फीता, कार लवाइ मे हाय चार! वाल वाधो, खुलेगा ना चल देगा तो मिलेगा ना। ~ दामाद को दाघा, नहीं टूटने का । दामाद बाघने को कार चाल वाघने १७




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