वेदवादद्वात्रिंशिका | Vedavad Dwatrinshika

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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क्रमांक २] सिद्धसेन दिवाकेरछृत वेदवादद्वा्तिशिका [२१ शमे मथी अगोचर वर्णवेखे ष्टो कवि पण तेने वेदातीत कटे छे । वेदोमा हेश परमात्मानु वर्णन न होय तेंथी पण वेदातीत कहेमाय ] मघ्रोनो पाठ मत्र थृतो अने थर्थचिंतन नहीं एवो कौत्सनो मत मानीएँं तो पण परमात्मा वेदातीत कटैवाय, अने षेद वर्णन करे तोय ते छेवटे दाब्दात्मक होगाथी सपूर्णपणे पर- मामासु पर्णन करी नं इके ए दृष्टिए्‌ पण ते वेदातीत कहेवाय । कविजु कहेवु एम छे के परमात्मा शब्दगम्य नथी छता ते ज्षेय तो छे ज । एटले जे एया परमात्माने ध्यान के खानुभगथी जागे छे ते ज जागे छे । सेश्वर साय अमे अद्रेत वेदान्तनी दृष्टि उपर अर्थ धटायपामा भाव्यो छे तेवी ज रीते जेनदष्टिए पण प्रस्तुत पथनो अर्थं वबर्‌ घटे छे । कमक जदि प्रयेक चेतननी बे अवस्था क्षीकारे छे ! ताचिकपणे - निश्चय द्टिए्‌ ते आतमाने अध्यक्ष ~ साक्षीरूप क्ैस-मोक्तृनी क्यथी निहीन अने शन्दागम्य माने ठे 1 ष्यारे व्यावद्वारिक दृष्टिए ते आत्माने कर्मनां सम्बन्धी शवर तेम ज नानाख्प- धारी माने छे } अद्रेत पत्र अने जीवमेद्‌ ए येना सम्बन्धनो जे सुटासो वेदान्तं करे छे तेज खुखासो जेनट्िर्‌ प्रलेफ सतनं चत्तनना ताखिक अने व्याव- हारिकः खरूपना सम्बन्ध पपे छे | छ्छगवेद भण्ड १ सूक्त १६४ ना मत्र २० मा जाणे सेश्वर साल्यनु वीज होय तैवी रीते एकज बृक्ष उपर रहेख वे पीथो विश्वमा रेड जीवामा भने एर मामा सये रूपक करी वर्णन क्एवामा आब्यु छे । वे समान खमावना सद- वारी मित्र जयां पलीओ एक ज शरक्षने आधित रहेटा छे । तेमाथी एक ~ जीवामा खदु एर (कर्मफड)ने चाखे छे, ज्यारे बीज पखी ~-परमाता एव फठ चाप्या सिवाय ज प्रकाशे छे । भा पीना ज बे भागटा मत्रोमा पण पृक्ष अने पखीओमु रूपक विस्तारी सदेज भगीभिदथी पुन जीवातमाओनु वर्णन क्रे छै । आ रूपक एरु बधु सचोट ओ अक्के के ते ्वायानि हाये वेषं वीती गयं; छतां ते चितको अने सामान्य ठोकोना विचारप्रदेदामाथी खसवाने यदे तच्लक्ञानना विकासनी साथे अर्थथी विकसतु गयु । अपरवषेदना काण्ड ९ सूक्त ९्मां एज छग्ेदमा प्रण मब्री छे । प्यारे सुण्डफ उपनिषद सु० २ ख० १ मां वे पष्ठीमा सुम्नो मब्र तो एज छे, पण लार्‌ बाद वीजा मत्रमा एम कटवा आब्यु छेके दृक्ष एक ज छता तेमां छन्ध धरो पुरुष दीनतामे सधे मोदं पामतो




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