भारतीय साहित्य की सांस्कृतिक रेखाएँ | Bharatiya Sahity Ki Sanskritik Rekhaen
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
26 MB
कुल पष्ठ :
322
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १० )
कहना हू. कि यदद शब्द “शरवन” का रूपांतर मात्र है जिसका श्रं “सर
था सरपत का सरकंडा नाम की घास की भाड़ी” किया जा सकता है |
श्रतरव, उनका यह श्रनुमान है कि वस्तुतः, “सरवण” नाम का कोई
आम न होगा श्र मंक्वलि के सरवणः वा “सरवन' में उत्पन्न होने
को कथा श्राजीवकों ने पीछे, स्वामी कारिकेय कौ जन्मकथा ऊ श्राधार |
पर गढ़ ली होगी, क्योंकि सर वा सरपत की घास में उत्पन्न होने के कारण
उस वौर देव सेनानी को भी कमी-कमी “शरवनभव” वा “शरवनोदूभव'
कहा जाता है ।* तथ्य जो भी रहा हो, “मरवती जब से यह भी पता
चलता है कि गोशाल श्रपने प्रारम्मिक जीवन में, मंख की जीविका करते
थे श्र श्रपने हाथ में चित्रपट लिये रहते थे । जब मगवान महावीर
'रायगिद” (राजणह) के निकटवर्ती नालंद के किसी जोलाहे के घर
(तंठवायसाला) मे कुछ दिनों के लिए: ठहरे हुए थे उस समय गोशाल
भी वहाँ पहुँच गए, ये वहीं पर ठहर भी गये श्रौर जब एक मास का
उपवास श्रत समाप्त कर के भगवान महावीर रायगिह ( राजग्रह) में
मिक्ताथं गये तो, वहाँ के नागरिकों ने उनका बड़ा स्वागत किया श्रौर
उन पर पुष्प-व्षा भी की गईं जिसे सुनकर गोशाल बहुत प्रभावित हुए
श्रोर उनके लौटने पर इन्होंने उनकी प्रदक्षिशा कर के उनका शिष्य भी
दोना चाहा । परन्तु जब भगवान महावीर ने इनकी प्रार्थना की शोर
कोई ध्यान नहीं दिया श्रौर उनकी प्रतिष्ठा मी उत्तरोत्तर बढ़ती चली
गई तो ये उनकी श्रोर भी श्रधिक श्राकृष्ट हुए श्रौर जब वे उस स्थान
को छोड़कर श्न्यत्र चले गए. श्रौर उनसे इनकी ' मेंट न हो सकी तो
इन्होंने श्रपने सभी वस्त्र, बर्तन; जूते श्रौर चित्रपर ब्राह्मणों को दे डाला ।
श्पने सिर एवं दाढ़ी के बाल मुँड़ा लिये श्रौर वहाँ से चल कर कोल्लाग
स्थान के बाहर पणीय भूमि में इन्होंने उनसे मेंट की श्र वहाँ पर
इन्दोनि उन राजी भी कर लिया | तवसे ये बराबर उन्हीं के साथ पाँच
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रै+. हिस्ट्री श्रॉफ़ दि श्राजीवकाजं', प° ३७ | १
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