गीत - अगीत | Geet Ageet

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( £ ) वस्तुत: ऐसा नहीं है। श्री कौशल के प्रस्तुत काव्य के हृदयंगम एवं ग्रास्वादन को जो सबसे पहली प्रतिक्रिया मेरे मन मे हई, उसीका परिणाम उपयुक्त चर्चा है। समय की हवा में बड़े-बड़े बहक जाते है, वे चिरन्तन तत्त्वो को भूलकर सामयिकता के बवंडर में चक्कर काटने लगते है, वस्तुतः यही क्षण परीक्षा की वेला सिद्ध होता है । मेरी दृष्टि में प्रस्तुत काव्य.के रचयिता इस परीक्षा में सफल सिद्ध हुए हैं। श्राज के इस वातावरण में जब कि नूतनता, सामयिकता एवं ग्राधुनिकता कौ दाढुर-पुकार के सम्पुख मानवता का शाद्वत . स्वर मंद पड़ गया है --श्रीं कौशल ने श्रपने व्यक्तित्व की सहजता, ्रास्था की दृढता एवं स्वर “की सरसतां को बनाय॑ रखा हैं : मेरे विचार से यह उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि है । श्री कौशल कौ कविता का स्वर उनके श्रांसुग्रों की श्राद्र॑ता एवं तरलता से सना हृश्राहै। हदय को तरल अनुभूतियांहीप्राय कवियों की प्रेरणा बनती है । इसी सत्य को स्वीकार करते हुए कविवर पत ने कहा था --वियोगी होगा ` पहला ` कवि, श्राह से. उपजा होगा गान !” श्र इसी सत्य को पुन: उद्धोषित करते हुए श्री कौशल कहते हैं -- ग्रासुग्रों से धुल गयी जब, हो गयी मुस्कान उज्ज्वल | अमर निधियां बन गयौ है, न दुःख में जो. गीत गाये ! कि कविवर. पंत .के अनुसार काव्य-सजन के लिये” वियोग' और श्राहः पर्याप्त हैं पर प्रस्तुत कवि इससे एक कदम झ्रागे की बात कहता है । उसके लिये आंसुभ्रों: का मेल मुस्कान के साथ ओर दोनों के मेल से प्रस्फुटित उज्ज्वल मुस्कान विशेष रूप से श्रपेक्षित है। दूसरे शब्दों




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