कचहरी की भाषा और लिपि | Kachhari Ki Bhasha Aur Lipi

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Kachhari Ki Bhasha Aur Lipi by रामबहोरी शुक्ल - Rambahori Shukla

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कचहरी को भापा और लिपि १५ दरपत लबु वो ही जामीन मजकूर में बैठावा वो ही पर काबीज था अब महाराज मजकूर ने खरीदारी वोदी जीमीन की कीया सब घो ही जीमीन का मोल करावा मोल भा रजावमंदी तरफएन रवैझा ३) मोकरर भा तव हानीर कोश भगवती सीवदत्त का चेश रामदाम का पोता वा वीकरम भरर का.वेटा कबला का पोता ण्ट शुद्यादी दौया तव सुरजन मादी वा राजसादी वा समपर- साद वा सुमेरा सजकूर डकरार शरई किव्मा की जीमीन मच्छर चा श्रमला फला शुधा सूपैया तीरपन ५३) शीका श्रालमगीरी योने पूरा पर महारान मजकृरके दथ चुड़ा चुडा ( १) कै बेचा बेचा रपैद्या मजकूर महाराज सो लेईके श्ापने शा मोजीघ हरीक दाम का वीज मो तसरफ भष्‌ चौः सुरजन शाही १३1) राजसा ६३) रामपरमाद्‌ १५॥)1 सुमेर मजु १०॥--)॥! जीमीन मजकूरपर मह्याराजको कावीज भोतमरफः काया कोई दावागीर पैदा दई तौ वेचवैष्मा जवाव कर ताः ६ माह रवील औली सन १८९५... ( ना० प्र° पिका प्र १५१५--२१ सन तस ३० ) औरंगजेय जैसे कट्टर सुसलिंम शासक के शासन में भी राष्ट्र भाषा हिंदी किस प्रकार राजभाषा फारसी के साथ साथ चलती रदो इसकी एक फलक मिल गई । 'अब इतना याद रखे कि-- “चाकश्म: यदद है कि मुसलमान बादशाह दमेश: एक हिन्ई सिश्टेटरी जो दिन्दी-नवीस कदलाता था श्रौर एक पारमीं सिकरेटरी जिसको वह फारसी-तर्वास कहते थे रखों करते थे'




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