प्यारे राजा बेटा भाग - 1 | Pyare Raja Beta Bhag - 1

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Pyare Raja Beta Bhag - 1  by रिषभदास रांका - Rishabhdas Ranka

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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खर्गीय राजिन्द्र ' होनहार बिखान के, होत चीकने पात” यह लोकोक्ति! बड़ी तथ्य-प्रण है । दाख्र-पुराणों और ऐतिहासिक घटनाओं में इसंकीं यथाथता का देन होता है । स्व० रा जे न्द्र भी ऐसा ही बालक, था | धुव, प्रल्हाद तथा अन्य भक्त बालकों की कया सददस्रो-लाखों वर्षों के व्यवधान से श्रद्धा और भक्ति की चीजें रह गहै, ताजा ओर प्रत्यक्ष होतीं तो वे भी कुतूहल पैदा करती । लेकिन आत्मा बहुत बडी चाज है। वह समय और स्थिति की सीमाओं या बाघाओं से अतीत है ! प्रगति-पथ पर अग्रसर आत्मा रारीर मे रहती तो है, उससे चिपट नहीं जाती । एक नहीं, दूसेर, इस प्रकार वह अपनी ऋ्रमागत प्रगति के. लिए नृतन देह भ धारण कर टेती है ओर्‌ काय पूरा देने पर देह से भी अतीत हो 'परम' तक पहुँच जाती है | शायद स्व० राजेन्द्र ने ® के को भी हम इसी श्रेणी में रख सके | राजेन्द्र का जन्म ७ माचे सन्‌ १९४० को जलगाँव (घूस) में हुआ । जन्म लेते ही, उसके पिता, श्री ० खिभदसि राका के घर में सुख-समृद्धि बढ़ने लगी । एक विरेष ` आनन्द और मानसिक, शान्ति का वातावरण घर में निर्माण हो गया | पिता के जीवन पर कांग्रेस अथवा गांधी विचार-घारा का प्रभाव. तो था दी, परम्परागत घार्मिक संस्कार भी जीवन-शोधन मे सहायक रहे । सेठ जमनालालजी/




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