महावीर का जीवन दर्शन | Mahaveer Ka Jeewan Darshan

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Mahaveer Ka Jeewan Darshan  by रिषभदास रांका - Rishabhdas Ranka

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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क रहता है ओरवे सारीर्कि सुख-प्राप्ति के लिए अनेक प्रकार की अक्तियों का संचय करते रहते हैं | वे शक्ति के संचव के कतैन्व- अकर्तज्य का विचार नहीं करते और दूसरों को कष्ट या दुःख पटँचाने में उन्हें संकोच नहीं होता । कामिनी-कांचन का मोह क्रामिनी-कांचन के मोह में फंसे हुए मह छोगो को अपने जीवन कै प्रति बडी आसक्ति होती दहै! वे शारीरि छुखोपभोग से ही मवुप्य-जीवन की - सार्थकता मानते है ओर उसके पक्ष में उइलीले देकर अपने तत्वन्नान का प्रसार करते 6 | वे कहते है कि संसार में न तय छामदायी हैं और न इच्चिय-दमन ही । ने कोई {~ नियम है और न व्यवस्था । अपने शारीरिक सुख के लिए, कामर- भोगों के लिए चाहे जैसी स्वच्छंदता से बरतने का ही वे उपदेश देते हैं। सामाजिक नीति-नियमों का या समाज के धारण-पोपण योग्य रीति-खिजों के पाछन का भी वे विरोध करते हैं | भले ही उनकी दर्ल्ले कामासक्त या खुखोपभोंग की इच्छा रखनेवालों को आकर्षक सेच ठेकिन वस्तुतः विवेकी ओर जानी जानते है कि यह आगे नाश की ओर छे जानेवाढा है। संयम का मांगे ही संसार सुख को बढानेवाला और कल्याणकारी है। दूसरों को कष्ट पहुंचाते है, दुःख दे সি সি [ 9 4 उनके तथा दूसरो के दुःखों की रद्ध इमा करती हैं ।




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