कम्युनिस्ट पार्टी का इतिहास | Kamyunist Partiy ka Itihas
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18.08 MB
कुल पष्ठ :
408
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कम्युनिस्ट पार्टीका इतिदास
यह एक आधुनिक सर्वेहारा-वर्ग था जो दास-प्रथाके युगमें कारखानोंमें/ काम करते-:
वाले मजदूरों तथा और छोटे-मोटे उद्योग-पंघोमिं काम करनेवाले मज़दूरोंति एक्स. भिन्न
था । यह इसलियि कि बड़े-बड़े कारखानोंमिं काम करनेवाले मज़दूरोंमें एकताकी भाविना
थी और उनमें विशेष क्रांतिकारी गुण थे |
१५ वीं सदीके ऊंतिम दशकमें इस टरत औद्योगिक उन्नतिका कारण रेलवे लाइनों का,
निर्माण था । इस अवधि २१,००० वर्स्ट ( लगभग १४,००० मील-सं. ) से ऊपर रेलवे
काशने बनायी गयीं । रेड बनाते समय इंजनों, डब्वों और रेलकी पटरियोंके छिये लोहेकी
जरूरत हुई और लोहेके साथ ज़्यादा ईंधन, पानी, तेल और कोयलेकी सौंग हुई । इस
मौगिकों पूरा करनेके लिये थातु और ईंधन संवन्धी उद्योग-धन्धोंका विंकास हुआ ।
.... अन्य पूँजीवादी देशोंकी तरह रूसमें भी औद्योगिक विकासके वादे छासका युग
आया जिससे मजदूरोंको भारी हानि सहनी पड़ी और सैकड़ों मजदूर बेरोजगार और
बेघरवार होकर इधर-उधर भटकने लगे । ः
दास-अ्रथाका अत होनेके बाद रूसमें पूँजीवादका विकास यद्यपि काफ़ी तेजीसे
हुआ, फिर भी आर्थिक विकासमें रूस दूसरे पूँजीवादी देशोंसे काफ़ी पिछड़ा रहा ।
अधिकांश जनता अब भी किसानी करती थी । लेनिनने अपने प्रसिद्ध यंथ “” रूसमें
पूँजीवादका विकास ”' में, १८९७ की जन-गणनासे ऑकड़े देकर यह दिखाया था कि
संपूर्ण जनताका लगभग ५/६ भांग फिसानीमें लगा था. और केवल १/९. साग
छोटे-वढ़े और न्यापारमें तथा छकड़ी या पानीकें काममें, या रेल या राजगीरी
या और ऐसे ही कामोंमें लगा हुआ था 1
, इससे स्पष्ट है कि रूसमें यबपि पूँजीवादका विकास हो रहा था, फिर भी वह एक
कषि-प्रधान और आ्थिक दृष्टिसि पिछड़ा हुआ देश था | उसमें मध्य-वरौकी प्रधानता थी
रूसमें अब भी उस छृषि-व्यवस्थाकी प्रधानता थी जिसमें किसान अपने छोटे-
छोटे जोतते-वीते थे, जिससे उन्हें बहुत कम आय होती थी ।
नगरोंकें अतिरिक्त गावोमिं भी पूँजीवादका विकास हो रहा था । क्रांतिसि पहलेके
रूसमें जनताका सबसे वड़ा वर्ग, किसान-वर्ग छिन्न-सिन्न हो रहा था । खाते-पीते किसानों
में से कुलक या धनी किसानोंकी श्रेणी वन रही थी जो देहाती पूँजीवादियोंकी श्रेणी थी 1
दूसरी भर बहुतसे किसान तयाह हो रहे थे तथा रारीव किसानों ओर सहारा और
अर्द्ध-सर्वह्ारा किसानींकी संख्या वरावर यढ़ रही थी । इन दोनों शरणियोंके वीन्वके
किसानों अर्थात् मझोलेकी संख्या प्रतिवर्ष घटती जाती थी ।
१९०३ से रूममें लगसग एक करोड़ किसान कुडंव थे । ” गांचके ग़रीयोंसे ”#
नामक अपनी पुस्तिका लेनिनने हिसाव लगाया था कि इनमें कमसे कम पेंतीस
छाख कुर्डब ऐसे थे जिनके पास घोड़े थे दी नहीं । ये डुड्ेव सबसे रारीव क्सानोंके
थे जो चहुधा अपनी भूमिकें कुछ हिस्तेम खेती करते थे और झेप धनी किसानोंको उठा
_ के हिन्दी संस्करण जन-प्रकाशन गृहसे सिल सकता है ।--र्स,
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