समीचीन - धर्मशास्त्र | Samichin - Dharmashastra

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Samichin - Dharmashastra by जुगलकिशोर मुख्तार - Jugalakishor Mukhtar

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जैनोलॉजी में शोध करने के लिए आदर्श रूप से समर्पित एक महान व्यक्ति पं. जुगलकिशोर जैन मुख्तार “युगवीर” का जन्म सरसावा, जिला सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। पंडित जुगल किशोर जैन मुख्तार जी के पिता का नाम श्री नाथूमल जैन “चौधरी” और माता का नाम श्रीमती भुई देवी जैन था। पं जुगल किशोर जैन मुख्तार जी की दादी का नाम रामीबाई जी जैन व दादा का नाम सुंदरलाल जी जैन था ।
इनकी दो पुत्रिया थी । जिनका नाम सन्मति जैन और विद्यावती जैन था।

पंडित जुगलकिशोर जैन “मुख्तार” जी जैन(अग्रवाल) परिवार में पैदा हुए थे। इनका जन्म मंगसीर शुक्ला 11, संवत 1934 (16 दिसम्बर 1877) में हुआ था।
इनको प्रारंभिक शिक्षा उर्दू और फारस

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६ समीचीन-घर्मशास्त्र समीप उरैय्यूर से की है जो प्राचीन चोलवंशकी राजधानी थौ । कहा जाता है कि उरगपुरभे जन्म लेकर वड़े होने पर जब शान्ति- वमी ( समन्तभद्रका गृहस्थाभ्रमका नाम) को ज्ञान हृश्रा तो उन्दोंने कांचीपुर मेँ जाकर दिगम्बर नग्नाटक यतिकी दीक्ता ले ली श्रौर श्रपने सिद्धान्तकि प्रचारके लिये देशके कितने दी भार्गो- की यात्रा की । श्राचाय जिनसेनने समन्तमद्रकी प्रशंसा करते हुए श्ट कवि, गमक, वादी श्रीर्‌ वाग्मी कहा र । चअरकलंकने समन्त- भद्रके देवागम भरन्थकी शअ्मपनी चअष्टशती विवृतिमें उन्हें भच्य श्द्धितीय लोकचनज्ञु कहा दै । सचमुच समन्तमद्रका अनुभव बढ़ा चढ़ा था । उन्होंने लोक-जीवनके राजा-रंक, उश्च-नोीच, सभी रस्तोंको आँख खोलकर देखा था श्र अपनी परीक्षणात्मक बुद्धि श्ौर विवेचना-शक्तिसे उन सबको सम्यक्‌ दशन, सम्यक्‌ व्याचार, श्मौर सम्यक्‌ ज्ञानकी कसौटी पर कसकर परखा था । इसीलिये विद्यानन्दस्वामीने युक्त्यनुशासनकी श्रपनी टीकामे उन्हें “परीक्े- अण' ( परीक्षा या कसौटी पर कसना ही है झाँख जिसकी ) की सार्थक उपाधि प्रदान की । स्वामी समन्तभद्रने अपनी विश्वलोकोपकारिशणी वाखीसे न केवल जैन मार्गकी सब शआरसे कल्याणकारी बनानेका प्रयत्न किया (८ जैनं वत्मे समन्तमद्रमसवद्धद्ध' समन्तान्मुहुः ), किन्तु विशुद्ध मानवी दृष्टिसे भी उन्होंने मनुष्यको नैतिक धरातल पर भ्रतिष्ठित करनेके लिये बुद्धिवादी दृष्टिकोण छापनाया । उनके इस इष्टिकोणमें मानवमात्रको रुचि हो सकती है । समन्तभद्रकी हृष्टिमें मनकी साधना; हृदयका परिवतंन सच्ची साधना है, वाद्य झाचार तो आडमस्वरोंसे भरे हुए भी हो सकते हैं । उनकी गजना हैकि मोद्दी मुनिसे निर्माद्दी गृहस्थ श्रेष्ठ है (कारिका ३३)। किसी ने चाहे चण्डाल-योनिमे मी शरीर धारण किया दो, किन्तु यदि उसमें सम्यग्‌दशनका उद्य होगया दै,तो देवता पसे व्यक्ति-




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