ऋग्वेद भाष्यम | Rigwed Bhashayam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ऋष्वेदः झ० ५। अभ है । वन रा || १९ र च क भविः वाचकल्लु ° -हं मनुष्या पंथा सुपुत्रः पितु- नप्राभोति तथाऽग्निरम्नीनप्रप्रोति प्रतिद्धो मत्वा स्वस्वष्पं कारणं प्राप्य स्थिरो भवति येऽभिन्याततांविदयुतं प्रकटयितुं विजानन्ति तेऽ- सरूपमेस्वयेमाम्ु्रन्ति ॥ १९ ॥ पदार्थ: -रें मनुष्यों जो (वानी ) वेंगकलादियुक्त ( वीकुपाणि: ) बलख्प | जिस के हाथ हैं ( तनय: 9 पुत्र के तुल्य ( अग्नि: ) श्रानि (यत्र) जहां (अन्यानू) | । अन्य ( अग्नीनू ) अग्नियों को प्राप्त ( श्रत्यत्तु ) अत्यन्त हो ( सःद़त्‌ ) वही' ( सहस्रपाधा: ) श्रतोल अन्नादिपदार्थों वाला ( अक्षरा ) जले को (समेति) म्यक प्राप्त होता है कहां उस को तुम लोग मिद्ध करो ॥ १४॥ मावाथें:--इस मंत्र में वाचकल ०-हे मनुष्यों ! जैसे सुपुत्र पितरों को प्राप्त हो ता हैं वैसे श्रण्नि श्रम्नियों को प्राप्त होता हैं तथा प्रसिद्ध हो कर अफने स्खूपकारण को प्राप्त होकर स्थिर होता है, नो लोग अभिव्याप्त बिजुली के प्रकट करने को जानते हैं दे असंख्य ऐश्वय्ये को प्राप्त होते हैं ॥ १४ ॥ पुनः सोऽग्निः कीदरीऽस्तोत्याह ॥ फिर वह्‌ भ्रग्नि केषा हे इछ विषय कोर ॥ क (क भ हि कै क # सदम्नियों वनुष्यतो निपाति समेदधारमहस 4५8 (~ क उरुष्यात्‌ । सुजातासः पार्‌ चरान्त व्र: ॥ १ ९९।२९६॥ सः। इत्‌ । अनग्निः । यः । वनुष्यतः । निऽपाति । सम्‌ऽ- एदधारम्‌ । भंहदंसः । उरुष्यात्‌ । सुऽजातासः । परि । चर- न्ति! वीराः ॥ १५॥ पदाथेः-- (सः) ( इत्‌ ) एर ( श्रग्निः ) पावक्रः ( यः ) ( वनुष्यतः ) याचप्रानात्‌ ( निपाति ) नितरां रक्षति ८ समेद्ध(- लि




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