मिना अथवा प्रेम और प्रतिष्ठा | Mina Athva Prem Aur Pratishtha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
216
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ८ )
विटनवबग मं शान्ति ओर स्वाध्याय का जीवन
बर्लिन में कुछ दही समय रहने कं बाद उसका मन वहाँ स
उकता गया । उसने चाहा कि संपादकत्व अदि के काम से अव-
काशा लकर कुछ दिनों शान्ति और स्वाध्याय का जीवन व्यतीत
करे । इस विवारसे वद विटनबग में अपने भाइ के पास झा
गया, ओर सन् १५५१ को वहीं शान्ति के साथ स्वाध्याय में
व्यतीत किया । यहाँ बह प्राचीन उत्कृष्ट रोमन आदि साहित्य
का पढ़ता रहा । साथ ही उसने कुछ समालोचनात्मक लेख भी
निकाले । इन लेखों के प्रभाव से वह उस समग्र का सब से
अधिक प्रसिद्ध '्ौर तीन्र समालोचक समभा जाने लगा |
बर्लिन में लोटना
१७५२ में वद बर्लिन लौट आया और “वोतिश ज़ाइट्ंग'
नामक पत्रिका के संबंध में उसने अपना काम पुनः शुरू कर
दिया । १७५३-१७५५ इ० में उसकी रचनाओं का संग्रह छः
भागों में प्रकाशित हुआ । इससे स्प्र हे कि इस समय तक
उसका काफ़ो ख्याति मिल चुकी थी और वह विभिन्न विषयों
पर अनक ग्रंथ ओर लेख लिख चुका था । इस संग्रह में जो
नाटक प्रकाशित हुए व उसके श्पने समसामयिक गलेट ( (९11-
€11 ), एलिश्रास श्लेगल ( 10125 0110९] ) आदि साहि-
त्यिक मित्रों की रचनाओं से कथा की तथा नाटकीय दृष्टि से
विशिष्ट थे । तो भी उस के सुखांत नाटकों में तात्कालिक नाट्य-
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