भारतीय विद्या | Bharatiy Vidhya

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Bharatiy Vidhya  by जिन विजय मुनि - Jin Vijay Muni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अंक १] किंचित्‌ प्रास्ताबिक [ ७ अंगका प्रारंभ किया था. और तमीसे इसके विकास और विस्तारका सतत खम देखा करते थे । गत वर्षेमें सेठजी श्री मुंगालालजी के अकल्पित और अमोध दानने इनके इस सरको सफटठ किया और इस ॒मूटनिधिके आधार पर, भारतकी प्राचीन विद्याका आधुनिक वैज्ञानिक पद्धतिसे अध्ययन, अन्वे- घण, अवलोकन और आलोचन आदि काथ करनेके साधन निमित्त इस भारतीय विद्या भवन का इन्होंने यद्द सुसंघटित प्रतिष्ठान किया । जे श्रीमान्‌ सुशीजी भारतीय निचाके एक उक्कृष्ट प्रेमी, गुजराती माषाके र्य्ध- प्रतिष्ठ ठेखक, जातीय संस्कारिता ओर अस्मिताके उत्कट प्रचारक, अग्रगामी रा्टमक्त, प्रखर प्रतिभावान्‌ न्यायविध ओर अतिकुराठ कार्यकर है । इन्हींके एकमात्र अथक परिश्रम, अदम्य उत्साह ओर व्यापक प्रमावसे इस संस्थाका ऐसा दृदमूल यह प्रादुर्भाव हुआ है और आशा है कि निकट भविष्यमें, बंबई नगरमें, यह अपने विषयकी एक सुप्रतिष्ठित और छुन्यवस्थित विशाल ज्ञानप्रपा बनेगी | 3 यो तों इस विद्या भवनकी पुण्यप्रतिष्ठा करनेमे अनेक विद्यप्रेभी सजर्नौ ओर सदगृहस्थने, उचित धनदानादि द्वारा प्रशंसनीय स्योगिता ओर सहानु- भूति प्रदान की है और कर रहे हैं -और एतदर्थं भवन इन सबका पूरण कृतज्ञताके साथ सदैव उपकृत बना रहेगा। पर इन सबमें, भवनके जन्म लेनेमें जिनका दान सबसे प्रधान और प्रथम निमित्तभूत हुआ है और जो जो दान भवनका एक अक्षयनिधि समान है-उस दानके निष्काम ओर निरभिमान दाता श्रीमान्‌ सेठ सुगालालजी गोएनका अनेकराः अभिनन्दनीय ओर अभिवादनीय है । सेठ मुंगालाठजी जैसे मूक- ्रकृतिके महादानी देरादुरैभम पुरूष होते हैं । राषट्रकी उन्नतिके लिये ८-९ खख जितने रूपयोंका भारी दान दे कर भी, इन्होंने न कभी किसी प्रकारके नाम पानेकी इच्छा की और न कभी किसी प्रकारके मान पानेकी अभिठाषा की । सेठजीका यह बिद्याप्रेम इन्हें उसी अमृतकी प्राप्ति करानेवाला बनो, जिसका निददीन हमने ऊपरके कु वाक्योमिं कराया है ।




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