स्वामी विवेकानंद जी से वार्तालाप | Svaamii Vivekaanandajii Se Vaartaalaap

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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टन्दन मे भारतीय योगर उन्होने यह मी कहा--^“ सभी धर्मी का लक्षय किसी विशेष मानवजीवन को आदशस्वरूप मानकर स्थूढ भाव से भक्ति, ज्ञान अथवा योग की शिक्षा देना ही है । इन आदी का अवलम्बन कर भक्ति ज्ञान और योग सम्बन्धी जो साधारण भाव तथा साधनाप्रणाजियोँ प्रचलित हैं, वेदान्त उसी का विज्ञान-स्वरूप है । हम तो उसी विज्ञान का प्रचार करते हैं ओर यहीं कहते हैं कि उसी विज्ञान की सहायता से, प्रत्यक व्यक्ति अपने अपने आदश को समञ्षटे । हम प्रत्येक व्यक्ति को अपनी अपना अभिज्ञता को ही प्रमाणख्प से ग्रहण करने का उपदेश देते हैं । ओर जहाँ हम किसी ग्रन्थ का प्रमाणरूप से उछेख करते हैं, वहाँ उसका अथ यहीं हे कि थोड़ा यत्न करके आप वे ग्रन्थ प्राप्त कर सकते हैं तथा इच्छा होने परर समी छोग उन्हें पट भी सकते हैं । सबसे बडी बात तो यह है कि साधारण लोगों के ठिय सव्धा अदृश्य रहने वाले अलौकिक महात्मा जो किसी एक व्यक्ति को माध्यम बना कर अपने उपदेश का प्रचार करते हैं उनके प्रति विश्वास करने को या उनके उपदेशों को हम कहीं पर भी प्रमाणरूप स॒ उपस्थित नहीं कर रहे हैं, ओर न तो हम यह भी दावा करते हैं कि किसी गप्त पस्तक से या किसी हस्तटिखित ग्रन्थ से हमने कोइ गुप्त विद्या सीखी है । न तो हम किसी गुप्त-समिति के सदस्य है आर न हम उस प्रकार की समिति से संसार का किसी प्रकार कल्याण होने का विस ही रखते है । सत्य स्वयं प्रमाण है । उसको धिरे म छिपाने का को प्रयोजन नहीं, वह तो अनायास ही दिवालोक को सहन कर सकता है । ' त




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