शान्तिपथ - दर्शन | Shantipath Darshan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ११९) ३-- कोई जमाना था कि तत्त्वज्ञोंके अनुभूत व सन्धानित तथ्योंको समभनेके-लिये उनके द्वारा आविष्कृत गूढ़ विशिष्ट परिभाषाओंको जान लेना आवश्यक होता था, जिसका परिणाम यह हुआ कि तात्विक विद्यायें कुछ इने गिने विद्वानोंकी ही सम्पत्ति वन कर रह गई और जन-साघारण उनके रसा- स्वादनसे वब्चित रह गया, जो कभी भी तत््वज्ञोंको अभिप्रेत न था । अतः प्रववताका कत्तेव्य हे कि जिस देश ओर युगकी जनताको सन्देश देना अभीष्ट हो, उन्हींकी मापा और मृहावरोंको. वह अपनावे । इन प्रबचनोंके प्रवक्‍ताने इस दिशामें जो कदम उठाया है वह अत्यन्त सराहनीय आर अभिनन्दनीय है । ` वा० जय भगवानजी जैन ऐडवोकेट, पानीपत ४-यद्यपि इस ग्रन्थमें संकलित विषयोंको परम्परागत आचार्यो द्वारा रचित आगमसे प्रेरणा लेकर लिखा गया हे, तो भी श्री ˆ ने अपने अध्यात्म-वल व सम्यक्‌ आचार विचारकी दूढ़तासे प्राप्त अनुभवोंके आधघारपर आधघुनिकतम वैज्ञानिक ढंगसे अत्यन्त सरल भाषामे इसका सम्पादनं किया है । ग्रत्थमें ज्ञानके अनुकूल भाचरण घारण करनेकी ओर अधिक ध्यान आक- पित किया गया है ! पं० रूप चन्दजी गार्गीय जैन, पानीपत ५--जो भाव व्यवत किवा अव्यक्त रूपसे मेरे अन्तस्तममें जोश मार रहे थे, लेकिन शास्त्र-ज्ञानसे अपरिचित होनेके कारण जिन्हें प्रगट करनेका साहस नहीं होता था, उन्हें डंकेकी चोट इस पुस्तकमें देखकर आत्मांको बहुत सन्तोष हुमा । ५ श्री उगमराव मोहनोत-मेजिस्टट प्रथम श्रेणी नसीरावाद (राज०) ६ श्री पूज्य...... ने वड़े सरल तथा वैज्ञानिक ढंगसे आषं सिद्धान्तोका उन्‌ मवपुणे माषामे प्रतिपादन कर समाजका महान उपकार किया हं । । * श्री प्रकाश मारित्ल हितैषी शास्त्री सम्पादक--सन्मति-सन्देश छ--श्री... «न ««. शान्ति पथके सफल पथिक है, अतः उनकी इस रचनामें सवेत्र मन्‌ मृतिके दशेन होते है । कवि घन्य कुमार जैन “सुधेशः ८--ब्ह्मचारी नन जच ने अध्यात्म सागरमें बहुत गहरी डुवकी लगा- कर वहुमूल्य रत्न निकाले हैं । श्री अयोध्या प्रसाद गोयलीय, डालमियानगर कलर का




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