शांति पथ प्रदर्शन | Shanti Path Pradarshan

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Shanti Path Pradarshan by जिनेन्द्र वर्णी - Jinendra Varni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(८) (पञ्च चाम्र छन्द) श्रपापविद्ध जो प्रसिद्ध, शुद्ध, बुद्ध, सिद्ध है, स्वयं स्वकीयपाडसे निबद्ध भी स्वतत््रहै। प्रसिद्ध शास्त्र में सुखात्मरूप, ज्ञान की प्रभा, विदेह-रूप कौन है ? अहो, यही स्वयम्‌ 'अहम्‌ *॥ अशेष-वेद-शास्त्र नित्य कीत्ति को बखानते न इन्द्रियादि-गम्य जो समस्त-ज्ञान-मूल है। गिरा-शरी र-बुद्धि की मलीनता विहीन है, समस्त-शास्त्र-सार-भूत है यही स्वयम्‌ 'अहम्‌' प्रपज्च-हैतु भी यही, प्रपञ्च-सेतु भी यही, विभोक्ष-देव-मन्दिरोच्च-भव्य-केतुर भी यही । यही महान से महान, सूक्ष्म सेपतिसूक्ष्म है कवीद्ध, प्राज्ञ, स्वभू, विधूम-ज्थोतिः है यही । यथा स्वकीय-पृत्र का विशाल भाल चूमती, न जन्मदाः स्व-दट्‌ का, न अन्य वस्तु जानती तथा प्रमोद के पयोधि की तरज्ज में रंगा-- हुआ 'अहं' न वाह्यकोनभ्रन्त को विलोकता निजात्म-जन्म-हेतु, ये समस्त लोक की प्रभा, घन-प्रकाश-रूप, चित्स्वरूप, रूप के बिना । क्रिया-कलाप-साक्षि-मूत, विद्धिलास-रूपिणी, प्रमोद की परा स्थली, ग्रहो, यही स्वयम्‌ श्रहुम्‌' || न वेद भी अभेय्य भेद जानता परेश” का, कभी यहाँ, कभी वहाँ, कमी कहीं, कभी कहीं- बना स्वयं विशाल एक जाल खेल खेलता, परन्तु जोकि वस्तुन. विमुक्त है, स्वतन्त्र है ॥ इतिशम्‌ बयानन्द भागंव १. पाप रहित २. “मैं, ३. ध्वजा, ४. मनीषि, ५. घुएं से रहित आलोक, ६. माता, ७. परमात्मा




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