नोबल-पुरस्कार-विजेता साहित्यकार | Nobel Puraskar Vijeta Sahityakar

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Nobel Puraskar Vijeta Sahityakar by राजबहादुर सिंह - Rajbahadur Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ग्रल्फेड नोवल भ्रौ र नोवल पुरस्कार १५ जाने चाहिए । यद्यपि सफल उम्मीदवारो के नाम समाचारपत्रो दवारा प्रति वरै नवम्बर्‌, महीने मे प्रकाशित हो जति है, किन्तु सस्था कौ ग्रोर से इसकी सूचना नियमपू्वेक १० , दिसम्बर को प्रकाशित होती है, जो श्रल्फ्रेड नोबल की निधन-तिथि है। इसी समय निणंयकर्ता पुरस्कार-विजेताश्रो को पुरस्कार की रकमो के चेक़ (जिनमे से प्राय प्रत्येक, ,, ८००० पौण्ड का होता है) देते है श्रौर साथ ही उन्हे सनद श्रौर स्वणं-पदक भी प्रदान, करते है जिनपर नोबल महोदय की खुदी हुई मुखाकृति श्रौ र कु लिखित मजमून. होता , है। पुरस्कार के नियमो मे एक वात यह्‌ भी लिखी हुई है कि पुरस्कार-विजेता क्रे लिए. जहा तक सम्भव हो, यह्‌ ग्रावर्यक होगा कि जिस पुस्तक पर उसे पारितोषिक मिला हो, उसके 'विषय' पर पुरस्कार प्राप्त करने के छ मास के अन्दर स्टॉकहोम मे व्याख्यान दे और शान्ति-सस्थापना-सम्बन्धी पुरस्कार-विजेता क्रिशिचियना में भाषण दे । पुरस्कार- सम्वन्धी उपर्युक्त नियम साहित्यिक पारितोपिको पर लायु नहीं हो सका, क्योकि साहित्यिक पुरस्कार-विजेताग्रो मे से वहुत-योडे एेसे हए है, ज) स्वय उपस्थित होकर पुरस्कार प्राप्त कर सके हो । निरयकर्ताभ्नो के निखंय के विरुद्ध किसी प्रकार की श्रापत्ति की सुनवाई नही हौ सकती । यदि निणेयकर्तन्नो मे कोई मतभेद होगा, तो उसकी सूचना न तो कार्य-विवरण मे प्रकाशित होगी, न सर्वसाधारण को दी जाएगी । जिस समिति द्वारा पुरस्कार के धन का प्रबन्ध होता है, उसका नाम है 'नोबल फाउण्डेशन' । इसके पाच सदस्य होते है, जिनमे से एक - प्रधान--की नियुक्ति स्वीडन- सम्राट करते हे श्रौर दोष चार सदस्यों का चुनाव प्रबन्ध-समिति से होता है । साहित्य- सम्बन्धी पुरस्कार का निदशंन “स्वीडिश एकंडमी' करती है, जिसके सदस्य 'नोबल इन्स्टीट्यूट' श्रौर उसके पुस्तकालयाव्यक् को सहायता से सव प्रवन्य करते है । इस सस्था. के पुस्तकालय मे पुस्तको का सुन्दर सग्रह है -खास करके ्राघुनिक लेखको की कृतिया यहा सव मिल जाती है । पुस्तक सभी प्रगतिशील भाषाओं की रखी जाती है और आवश्यकता पड़ने पर उनके श्रनुवादो की प्रतिया भी रखी जाती है । नव प्रकाशित पुस्तकों के नये से नये विवरण भी यहा प्रस्तुत रखे जाते है । सुपरिणाम चाहे भ्रौर जो हो, किन्तु यह वात सुनिञ्चित है कि ्रल्फड नोवल की पुरस्कार- सम्बन्धी दो दर्तों का पालन सुचारु रूप से हुमा है । पहली वात यह हुई है कि सभी क्षेत्रों के पुरस्का र-विजेताश्रो द्वारा मनुष्य-जाति की 'बहुत' नही, तो 'कुछ' सेवा श्रवव्य हुई है, श्रौर दूसरी वात यह हुई है कि पुरस्कार के उम्मीदवार की जातीयता पर कोई विचार नही किया गया! पहला नोवल पुरस्कार सन्‌ १९०१ ई० मे दिया गया था । तव से १९२४५ ई० तक साहित्य-सम्बन्धी पारितोपिक ससार के विभिन्‍न राप्ट्रो के व्यक्ति प्राप्त कर चुके है। इन पुरस्कारों का अन्तर्राप्ट्रीय प्रभाव अच्छा हुमा है श्ौर सभी सम्य देशो में




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