ममता के बन्धन | Mamta Ke Bandhan

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Mamta Ke Bandhan by विलियम समर सेट - Viliyam Samar Set

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न्होंवे लिखा कि उसे ऐसा नहीं लिखना चाहिए था | वे लॉग दो जो कुछ कर . हरे उक हितम द्री कर रहे थे | क्राघ,सें फ़िलिप की चुद्धियों धिच गयीं । ऐसी बाल वो ने जाने वह कितनी बार सुन चुका है पर आवश्यक नहीं कि वे सब सच हां | न जाने क्यों उयादा तवस्था के श्रादर्म! सेते हैं कि वे ब्ोरों से शषिक बुद्धिमान हैं | «मी ५५७ मी यह्‌ छव मान लिते ह वह ्रपनी परिहिथति खद्‌ खपभू रुकता | तगृ बदन श्रवु वदन्‌ क छुट्टी रे की श्राज्म साँगी । मिस्टर पर्कित्स ने कड़े शब्दों में मना कर दिया. बिना उत्तर दिये वह बाहर चला श्या} उसका मन इस शनादर से तद्धयं उख था} वहु बिना श्राज्ञ लिए पीछे के रास्ते से स्कूल के ग्रह्माते से . बाहर आरा गया आर न्लेकस्टेबिस पहुँच गया | न = श्रिल्लिप बहुत श्रविशमं था] घर पहुँचकर वह क्रोध से उचल पड़ा । ` उसने श्रपने चाचा को इतना नाराज कर दिया कि वे वहाँ से उठकर चले गए | ` ` म्फरलिप, ठम्दे रेसी बातें त्रपते चाचा से नहीं कहनी चाहिए थीं । उनसे. _ नमा माँग लो, चाची ने सम्या | मैं तमा नहीं माँगूँगा । जो रुपया मेरा हैं उसे मुझे स्कूल में पढ़ाकर यों बरनाद कर रहे हैं । ऐसे लोगों को मेरा संरखक बनाना ही अनुचित था जिन्हें मेरी इच्छाश्रों से कोई हमद्दों नहीं ।” फिल्लिप क्रोध में पागल था |) (किलिप ! चाची को उखके व्यवहार से अटते चोट लगी थी न जाने क्यों चाची को व्यथित देखकर वड्‌ विचलित हौ जाता था | फ़िलिप की श्रॉखों में द्ाँधू दा गये | _ से आपका दिल नहीं दुखाना चाहता था, समै खेदं है ;' सिंसकते हुए नानी ने कहा--मेैं कमी तुम्हारे उतना निकट नहीं त्रा सकी जितना मैं चाहती थी | मैं कभी यहद न जान सकी कि मैं कया. करूँ | जितना -१६-




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