ममता के बन्धन | Mamta Ke Bandhan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
27 MB
कुल पष्ठ :
176
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)न्होंवे लिखा कि उसे ऐसा नहीं लिखना चाहिए था | वे लॉग दो जो कुछ कर .
हरे उक हितम द्री कर रहे थे |
क्राघ,सें फ़िलिप की चुद्धियों धिच गयीं । ऐसी बाल वो ने जाने वह कितनी
बार सुन चुका है पर आवश्यक नहीं कि वे सब सच हां | न जाने क्यों उयादा
तवस्था के श्रादर्म! सेते हैं कि वे ब्ोरों से शषिक बुद्धिमान हैं |
«मी
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मी यह् छव मान लिते ह
वह ्रपनी परिहिथति खद् खपभू रुकता
| तगृ बदन श्रवु वदन् क छुट्टी रे
की श्राज्म साँगी । मिस्टर पर्कित्स ने कड़े शब्दों में मना कर दिया.
बिना उत्तर दिये वह बाहर चला श्या} उसका मन इस शनादर से
तद्धयं उख था} वहु बिना श्राज्ञ लिए पीछे के रास्ते से स्कूल के ग्रह्माते से
. बाहर आरा गया आर न्लेकस्टेबिस पहुँच गया | न
= श्रिल्लिप बहुत श्रविशमं था] घर पहुँचकर वह क्रोध से उचल पड़ा ।
` उसने श्रपने चाचा को इतना नाराज कर दिया कि वे वहाँ से उठकर चले
गए | `
` म्फरलिप, ठम्दे रेसी बातें त्रपते चाचा से नहीं कहनी चाहिए थीं । उनसे.
_ नमा माँग लो, चाची ने सम्या |
मैं तमा नहीं माँगूँगा । जो रुपया मेरा हैं उसे मुझे स्कूल में पढ़ाकर
यों बरनाद कर रहे हैं । ऐसे लोगों को मेरा संरखक बनाना ही अनुचित था
जिन्हें मेरी इच्छाश्रों से कोई हमद्दों नहीं ।”
फिल्लिप क्रोध में पागल था |)
(किलिप ! चाची को उखके व्यवहार से अटते चोट लगी थी
न जाने क्यों चाची को व्यथित देखकर वड् विचलित हौ जाता था |
फ़िलिप की श्रॉखों में द्ाँधू दा गये |
_ से आपका दिल नहीं दुखाना चाहता था, समै खेदं है ;'
सिंसकते हुए नानी ने कहा--मेैं कमी तुम्हारे उतना निकट नहीं त्रा सकी
जितना मैं चाहती थी | मैं कभी यहद न जान सकी कि मैं कया. करूँ | जितना
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