श्री जवाहर - किरणावली द्वितीय - किरण दिव्य - जीवन | Shri Jawahar Kirnawali Dvitiy - Kiran Divy - Jivan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
300
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)परमात्मध्यान |. जवाददर-किरणावडी र द्वितीय भाग [ ३
उपाधि को हटाने के लिए प्रगाढ़ श्रद्धा ओर प्रवल पुरुषाथ की
अपेक्षा है। गीता मे कदा दैः-
| श्रद्धामयोऽय पुरूष. ।
पुरुष श्रद्धा की मूर्ति है । जिस पुरुष ' की जैसी श्रद्धा दे व
चैसा दी बन जाता है । सांसारिक प्रपंचों सम्बन्धी श्रद्धा रखने
चाला पुरुष सांसारिक बन जाता दै रौर परमात्मा संबंधी श्रद्धा
रखने वाला परमात्मा बन जाता दै । पुरुष होकर सदा स्त्रीत्व
की भावना करने बाला पुरुष खी-सरीला षन जायगा । इसी
प्रकार समी यदि पुरुष्व कौ प्रवल भावना करे तो उसके स्वभाव
में पुरुषत्व-सा जाग उठेगा । तात्पर्य यदद है कि मनुष्य लैसा ध्यान
करेगा, वैता दी बन जायगा ।
आतम परमातम पद् परे, जो परमातम से लय खवे ।
सुनके शाब्द कीट श्ंणी का, निज तन सन की सुधि विसरावे ॥
देखहु प्रगट ध्यान फी महिमा, सोऊ कीट भंग हो जावे ॥ भा०॥
आत्मा को परमात्म-पद पर पर्ने का उपाय, आत्मा फो
परमात्मा के ध्यान में तल्लीन कर देना है । जवः ध्यान् द्वारा
श्रास्मा, परमात्मा के स्वरूपः मे निम्र हो जाता दै तव वह् स्वयं
परमात्मा बन जावा है ।
प्रश्त किया जा सकता दै कि परमात्मा के ध्यान में निमञ्न
ोने से श्राट्मा स्वयं परमात्मा बन जाता दै, इसका प्रमाण
क््याहे |
जो उपदेश दिया जाता है बह विश्वास उत्पन्न करने के
रिए । यदि श्रोताश्रों के हृदय में पर्याप्त मात्रा में विश्वास दो तो
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