श्री जवाहर - किरणावली द्वितीय - किरण दिव्य - जीवन | Shri Jawahar Kirnawali Dvitiy - Kiran Divy - Jivan

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Shri Jawahar Kirnawali Dvitiy - Kiran Divy - Jivan by पं. शोभाचंद्र जी भारिल्ल - Pt. Shobha Chandra JI Bharilla

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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परमात्मध्यान |. जवाददर-किरणावडी र द्वितीय भाग [ ३ उपाधि को हटाने के लिए प्रगाढ़ श्रद्धा ओर प्रवल पुरुषाथ की अपेक्षा है। गीता मे कदा दैः- | श्रद्धामयोऽय पुरूष. । पुरुष श्रद्धा की मूर्ति है । जिस पुरुष ' की जैसी श्रद्धा दे व चैसा दी बन जाता है । सांसारिक प्रपंचों सम्बन्धी श्रद्धा रखने चाला पुरुष सांसारिक बन जाता दै रौर परमात्मा संबंधी श्रद्धा रखने वाला परमात्मा बन जाता दै । पुरुष होकर सदा स्त्रीत्व की भावना करने बाला पुरुष खी-सरीला षन जायगा । इसी प्रकार समी यदि पुरुष्व कौ प्रवल भावना करे तो उसके स्वभाव में पुरुषत्व-सा जाग उठेगा । तात्पर्य यदद है कि मनुष्य लैसा ध्यान करेगा, वैता दी बन जायगा । आतम परमातम पद्‌ परे, जो परमातम से लय खवे । सुनके शाब्द कीट श्ंणी का, निज तन सन की सुधि विसरावे ॥ देखहु प्रगट ध्यान फी महिमा, सोऊ कीट भंग हो जावे ॥ भा०॥ आत्मा को परमात्म-पद पर पर्ने का उपाय, आत्मा फो परमात्मा के ध्यान में तल्लीन कर देना है । जवः ध्यान्‌ द्वारा श्रास्मा, परमात्मा के स्वरूपः मे निम्र हो जाता दै तव वह्‌ स्वयं परमात्मा बन जावा है । प्रश्त किया जा सकता दै कि परमात्मा के ध्यान में निमञ्न ोने से श्राट्मा स्वयं परमात्मा बन जाता दै, इसका प्रमाण क्‍्याहे | जो उपदेश दिया जाता है बह विश्वास उत्पन्न करने के रिए । यदि श्रोताश्रों के हृदय में पर्याप्त मात्रा में विश्वास दो तो ५




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