हिलोर | Hilor
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
190
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)= हिलोर
वहाँ ले गया था । सिनेमा देखकर जब हम लोग लौटने
लगे तव मेने वही प्रसंग लेड दिया । मैंने पूछा --“हाँ, अब
वतलाश्रो, तुमने जो इतने दिनों तक विवाह नहीं किया था,
उसका कारण क्या था ?''
उसने कहा--बढ़ी विचित्र बात है कि मेरी प्रियतमा ने भी
यही प्रश्न एक दिन मुकसे किया था । और, इसी प्रश्न के
कथोपकथन ने उस दिन से मेरी जीवन-धारा को इस ओर
सोड़ दिया । आप जानते ही हैं, मैं नियम से फूलबारा घूमने
जाता हूँ । सायंकाल तो केवल घूमने की इच्छा से जाता हूँ ।
पर कभी-कभी सबेरे भी जाया करता हूँ । और सवेरे जाने का
अभसिप्राय होता है खुली हवा में बेठकर अध्ययन करना । गत
वषे, सर्दी के दिनों में, जब मैं उघर जाया करता था, तत कभी.
कभी एक तरुणी भी उधर आ जाती थी । अनेक बार ऐसा
हुआ कि वह मेरे निकट से ही टहलती हुई निकल गई । में
झपने अध्ययन में इतना लीन रहता कि मुझे उसके आतने-
जाने का प्रायः पता ही न चलता था ।
में भुन्कड़ भी परले दर्जे का हूँ; आप जानते ही हैं । एक
दिन एक बेंच पर एक पुस्तक भूल गया। मुझे उस पुस्तक
की याद तब श्रा जव स्कूल में पढ़ाने के लिये उसकी
आवश्यकता पड़ी । सायंकाल में वहाँ पहुँचकर उमे खोजन
लगा । मैंने इधर-उधर बहुत दूढा, पर कहीं भी उसका पता न
चला । अंत में जब में निराश होकर वहाँ से चलनः
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