आदर्श - महात्मागण | Adarsh - Mahatmagan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
200
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about चतुर्वेदी द्वारका प्रसाद शर्मा - Chaturvedi Dwaraka Prasad Sharma
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)म श्रादशे-महाप्मागण
हो कन्याएँ थी । पुत्रो के नाम ये धे--उपूरः निपूर, करकुशडक,
उच्कामुख शोर हस्तिशीपंक । कन्याश कै नाम ये धे- शद्धा,
पिमला, पिता, जला श्र जली । इन कन्थाश्यो के भरतिरिक
खुन्नात कै एक श्रौर पुत्र था, जिसका नाम जन्तु था | वह राज्ञा
की पटरानो की सखी की काख से श्र राजा के श्नोरसख से उत्पन्न
इश्या था । मखी का नाम था जेन्ती, इसीसे सव लोग उसके
पुज को 'जेन्तु' जन्तु कहा करते थे ।
राजा सजात, पक दिन इस सखी की सखीभाव से ध्राराधना
कर रहे थे । जेन्ती भी उनको वासना पूर्ण कर रही थी । इस
पर राजा ने प्रसन्न हो कर, जेन्ती से कहा-“तुश्दारा सौजन्य
देख कर, दम तुम्हें वर देना चाहते हैं ; श्रतः जा तुम चाहती हो
सा चर माँगो ।” राजा के ऐसे वचन सुन; जेन्ती ने मन ही मन
षिचारा कि, जव यह राज्ञा न रहेगा , तव इसके प्न्य पच सारा
राज्ञ श्रापस में बॉट लेंगे; मेरे पुत्र को कोई पृ देगा भी नहीं;
घतः में ऐसा चर मागृ , जिससे मेरा पुत्र हो झ्याध्या की राज-
गही पर वे ! इस प्रकार साच विचार कर, जेन्ती ने कटा
“प्रहाराज ! यदि श्राप सचमुच मुझे वर देना चाहते हैं, तो
प्माप श्रपने पचो पुत्रो के देश-निकाला दे कर, मेरे चेटे को
राज्य प्रदान कीजिये ।” महाराज खुजात जेन्ती के मुख से,
यह बात सुन बडे दुःखी हुए । किन्तु प्रतिज्ञा भड्ड होने के डर से,
किसी प्रकार श्रपनी वात के नट्दीं टाल सके । राजा ने कहा--
'्च्छा ऐसा ही होगा” घ्ौर जेन्ती की मनोकामना पूरी की ।
राज्ञा फे वरप्रदान को चचां सारे नगर में फैल गयी । राज-
पुजो ने श्रपने पिता कौ वात रखने के लिये, राज्य छोड़ कर
वन को प्रस्थान क्रिया । राजकुपारो का वन में जाते देख
राज्ञधानी-वासी नेक नर उनके साथर लिये) यै लोग श्रनेक
User Reviews
No Reviews | Add Yours...