दाशरथी - श्रीरामचन्द्र | Dasharathi-shriramchandra
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
162
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तीसरा अध्याय | £
श्मपने पुत्र मारीच आर सुबह के साथ महर्षियो के तप
मै विन्न डालने लगी । यई देख गाधिनन्द्नं विश्वामित्र
अयोध्या गये तथा अपने यज्ञ की रक्षा कराने को महाराज
दृशरथ से दूस दिन के लिये श्रीराम को माँगा । यद्यपिवूढ़े
वथा पुत्रवरघल्ल महाराज दशरथ, रसो के साथ युद्ध
“करने के लिये श्रीराम को भेजना नहीं चाहते थे-तथापि
विश्वामित्र के क्रोध के डर से नौर वरिष शुनि क पूरा-
मशु से, बित्रश हो इन्द श्रीराम श्रीर् लक्मण को
बिश्वामित्र के साथ भेजना पड़ा |
तीसरा श्रध्याय !
= सदपि विश्वामित्र दोनो कालकं को साथ ले श्रयोध्या नाडका-थ!
। से चले । रास्ते म उन्दने दोनो को श्चुधा-वृष्णा-निवारक
ओर स्षवे-सिद्धि-कासी एक महामंत्र ववललाया । फिरते कई
एक जनपद्, तपोवन, श्रौर मदी पार कर, ताड़का-धरषित
१-विश्वामिते चन्द्रयंशीय कान्यङ्ग्नाधिपति रिक की सी
पीरकुत्सी के गर्म से ( इन के धेश से ) महाराज गाधि के पुत्र
एक बार वशिष्ठ ॐ तपोबल को देल वे पुष हो गये अर जहिं होने
की लालसा से अरति कठोर तपस्या कएने लगे । बहुविधि च्ताधारण
विर्न फो अतिक्रम कर, अन्त में वे जहार्षि पद को प्राप्त हुए |
२-वशिष्ठ का परामशे ( मतास्तर )
योगमाया ठु सीतेति जाता जनकनन्दिनी ।
विश्वाभित्रोऽपि रामाय लां योनयिुमायतः ॥
३~वल्ला और अतिवता मंत्र ।
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