प्रारम्भिक आचार शास्त्र | Prarambhik Aachara Shastra

Prarambhik Aachara Shastra  by अशोक - Ashok

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहला परिच्छेद विपय-प्रवेश ` 2 “सनुत्य एक सामाजिक प्राणी है। वैते लोग जो एकान्तप्रिय होते है उनको ' भी समाज की जरूरत होती दै। मनुष्य का भरण-पोषण सामाजमे दी होताः है। अत मनुष्य के कर्मों का प्रभाव समाज के अन्य सदस्यौ पर पड़ता दै ५ इसीलिए हम उनके कर्मो की प्रसंशा यां निन्दा अर्थात्‌ मूल्याकन करते हैं। बेसे कर्म जो हमें अच्छे प्रतीत होते हैं उनकी प्रशंसा और वैसे जो खराब, उनकी निन्‍्दा की जाती है । कभी-कभी कोई कर्म हमे तो अच्छा लगता है पर कं लोगों को खराव । यदि किसी ने एक गरीब विधवा से शादी करली तो कुछ लोग उसकी प्रशंसा और कुछ उसकी निन्दा करते हैँ । ऐसा इसलिंए.. होता- है किं हमारा श्राचरण-सम्बन्धी दृष्टिकोण भिन्न रहता है; बचपन से ही अच्छे और दुरे की रिक्ता हमें अपने बुजुर्गों से मिलती रहती है । वढ्कर हम उसी विचार को अपनाए रहते हैं; और चूंकि सभी मनुष्य के वचपन का वातावरण एक नहीं रहता अर्थात्‌ भिन्न लोगो के द्वारा भिन्न समाज में शिक्षा होती है, अत हमारे विचार भी 4 हो जाते हैं । इसीलिए अच्छे-बुरे कर्मी का विचार भी भिन्न हो जाता दहै 1*साधारणत समाज के प्रचलित तरीके ' ' ही हमारे अच्छे बुरे कर्मों के पहचानने के आधार हैं, क्योकि हमारे समस्त विचारों के वे ही आधार रहते हैं। इसीलिए किंसी शाख्र के अध्ययन किए बिना ही हम दूसरे और अपने कर्मों की प्रशसा या निन्दा क्रिया करते हैं। पर यदि यह पूछा जाय कि क्यों हम किसी कर्म को अच्छा- या क्यों किसी कर्म को खराव कहते हैं तो इसका. उत्तर साधारणत.- दो मिलता दै ~ एक ' तो यह किं अमुक काम अच्छा है और श्रसुक खराब, इसलिए हम उसे वेसा ` कहते हैं। इसका झ्रेथ यह हुआ कि हमे इस वात की चेतना है कि कौन कर्म अच्छा या खराव है पर हम अच्छा-खराव क्या है, कौन से आदर्श को. ई




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