राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला | Rajasthan Puratan Granthamala
श्रेणी : भारत / India
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7.97 MB
कुल पष्ठ :
186
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ. दशरथ शर्मा - Dr. Dasharatha Sharma
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कविवर जान और उनके ग्रन्थ हर
कुल अन्य २१, हे; २, १९, ३, ११; 9, द,न्ल्पेप ।
श्री रावत सारस्वतसे प्राप्त सूचीके श्रजुसार १ - सुधासागर श्ौर २ - स्वास संग्रह, दो श्रौर
होने चाहिए, श्रतः कुल मिलाकर ७० दोते हैं ।
अन्य ग्रन्थ
१, कवि चढलभ, र. सं. १७०४, शादजहके समय । काव्य शास्त्रका सदस्वपूर्ण अन्थ ।
२. मदनविनोदु, र. सं. १६९० का. सु. २, कोक,; पंचसायक, नंगरंग, श्दज्ारतिलकके
ाधारसे रचित ।
३. घुद्धिसागर;-र. सं. १९६९५ मि. सु. १३; पंचतंत्रका श्रज्ुवाद, शाहजहाँको भेंट किया ।
इस श्रन्थके संबंधमें विशेष जाननेके लिए “'कविजानका सबसे बढ़ा अन्थ' शीषक लेख देखना चाहिए,
जो कि हिन्दुस्तानी, भाग १६, श्रट्न श में प्रकाशित है ।
४. ज्ञानदीप, पथ प६०८ कथाएँ, सं. १६८६ वे. व. १९, 9० दिनमें रचित । ( जय-
'चन्दूजी संग्रह, श्री पूज्यजी संग्रैद, बीकानेर ) देखें त्रजभारती, चर्ष १; भ्रक्ठ ११ ।
५. रसमंजरी, र. सं. १७०४ का, पत्र ४४, सरस्वती भण्डार, उदयपुर ।
६, लफखाँकी पैडी, - प्रस्तुत अन्थके परिशिष्टमें प्रकाशित हो रददी दै ।
७. कायम रासा - प्रस्तुत क्यामर्खा रासा ।
उपर्युक्त अन्थोंमेंसे बीकानेरके संग्रहालयोंमें जान कविके निम्नांक अ्रन्थोंकी अतियाँ प्राप्त
हैं । सम्पादनादिमें उपयोगी समक सूचना दी जा रही है-
अनूप संस्कृत लाइब्रेरी में
१. सतवंतीसत, र. सं, १६७८, सम्चद् १७२६ व १७२९ की लिखित दो श्रतियाँ प्राप्त हैं ।
२. लैला मजनू ; सं. १९९१, (सम्बत् १७५४ की लिखित संग्रद्द ्रतिमें ) ।
३. कथामोहनी, र. सं. १६९४ मि. सु. ४ ( सं. १७२९३० लि. संग्रह-प्रतिमें ) ।
४. कविचरलभ, र. सं, १७०४ पत्र, प६ । महत्वपूर्ण काव्य अन्थ, चित्र काव्य थी है ।
५. रसकोष, र. सं. १६७६, पत्र ३७ ( सं. 9६८४ फतहपुरमें लिखित प्रति)
६. मद्नविनोद, र. सं. १६९० का. सु. २ पत्र २७ ( सं, १७४३ मे लि. प्रति )
हमारे अभयजेन ग्रन्थालयमें
१. घुद्धिसागर, सं, १६४५ पत्र ३८६ (सं. १७१६ लिखित) ।
रे. क्यामरासो, सं० १६९१५ (प्रति सं, १७११में की गई ) ।
दे. अलफखांकी पढ़ी, पय १००, सं. १६८४ लगभग ( सं. १७१६ लि. ) ।
४.८ चढ़ुक मति, सं. १६९५ ।
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