खेती की कहावतें | Kheti Ki Kahavaten

Kheti Ki Kahavaten by श्री व्यथित हृदय - Shri Vyathit Hridy

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० खेती की कहावतें &. पछिवाँ श्राई बादरी , राँढ़ इषुबी जाय; यह बरस, वह घर करे, उनको यही सुमाय । १०. जब पवन चल पुरवाई , तो बादर काटि लगाई । ११. सावन पहिली पंचमी जोर कि चलें बयार , तुम जाना पिय मालवा, दम जावे पितुसार । १२. भादों जे दिन पश्छिम बयार , ते दिन माधे पड़े तुसार। १३. मावे - पसे बह पुरवाई , त्र सरसो कह माहो खाई । १४. माघ - पूष दक्खिन चले, तो सावन के लच्छन करे। १५. रबाभोर चतौ पुरवा, तब जानो वषां - ऋतु श्राई। १६. जब जेठ चले पुरवा, तब सावन धूल उड़ाई । १७. सावन के मुख पच्छिमा , यह है समय कि लच्छिमा । १८. बयार चले ईसाना , ऊँची खेती करो किसाना।




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