विज्ञान परिशत का मुखपत्र | Vigyan Parishad Ka Mukhapatra

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Vigyan Parishad Ka Mukhapatra by गोपालस्वरूप भार्गव - Gopalsvaroop Bhargav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१४६ : विज्ञान [मांग १३ सकता है; जो साधारणतः एसी टिलीने लैम्पो्म इसका व्य पक सूच रन-र हैं एसिटिलीन का सुज उ-ऊ = क-उ है। झमेरिका के तेलेंमें विशेष- ता मिथेन श्रेणी के ही कबाज्ज़ विद्यमान हैं किन्तु जो तेल दच्तिणी रूसमें निकलता है उसमें कुछ पेते कबाज्ज भी विद्यमान है जो बेन्ज़ीनसे # समतां रखते है । यह्‌ प्राकृतिक तेल सामद्रिक जीव श्रौर बनस्परतियें पर अनन्त काल के उत्ताप और दबाव ` क्रियाश्च से बने इये कोड एक यंःगिक् नहीं-वरन्‌ नेक यौगिको के मिश्रण हैं । इनमेंसे सबसे छोटा मेम्बर मिथेन पृथ्वीसे गेस रूपमें बाहर निकलता .- रददता हे । जैसे जैसे कार्बनका झंश इनमें बढ़ता जावा है वैसे ही उडनेकी ` शक्ति उनको कम होती जाती हे भौर उवलने कां तापक्रम भी धीरे घौर कम,हेता जाता है। जब कबन के पर माणु ऑकी संख्या : ९६ पर पहुंच जातो है. तव वह॒ यौगिक साधारण, तापक्रम पर पक ठोस पदाथ हे। जाता है । पुथ्वीसे निकला हुझा पेट्रोलियम जब उबाला जाता हे तो अधिक उड़ने वाले क्बोज्ज पहले उड़. जाते है र छदे दे ताण्करमो पर उड़े हुये झंश - अलग श्रलग इकट कयि जाते) इस प्रकार पेटोलियमके नेका जुरे चदे अश प्राप्त होते हैं। इनमें जो झंश ७०० से &०० शतां श पर इकट्ठा होते लिग्रोइनके नाए जनोमें जलाने श्र गलानेके लिये व्यवहार में आते है । तीसरे श्रंण जो १२०१से १५० शतांश पर इकट्टें क उडने वालेतेलोके अ शोक पूर्ण रूपसे दुर न करने एक दूसरी अणीकों कबो जन है जिसमें कर्बन... एप + श होते हैं उन्हें बेनज़ाइन' अथवा बेनज्ञालियन क्ते तेज़ रोशनी उत्पन्न करने के लिये प्रयोग होता हैक. हैं । ये ऐसे कपड़ोंके धोनेमें काम ते हैं, जहाँ - यह श्रेणी इथिलीन श्रेणीसे भी अरधिक्र अवप्तहे पानीका प्रयागः हानिकारक है अथवा.जहां मैल-- वानस्पतिक तेल इत्यादि--केवल .पानीकी सह्य. यतासे दुर नहीं हो सकता । जैख़े ज्ञेसे गरमीः बढ़ाई जाती है ऊंचे तापक्रम पर उड़नेवाले झंश: डउड़ना शुरू करते है। १५०से ३००” शर्तांश पर जो अंश उड़ते हैं उन्हें किरोसीम कइते हैं । यही तेल टीनों में भर कर य्दीं झातां हैं और हम लोगों के घरों में लालटेनौमें जलाया जानां दे (इस से भी ङ्के तापक्रंम॑ ८पर.उड़ने वाली वस्तुएं मशीनीकों ऊँगने” चाले पवः 0118) तेल अर वेसल्लीन हं | जो श्र॑श उडनेसे रद जाता दहै उसे पाराफीन कहते हैः श्रोर वह प्रायः ४५०-६५० शतांश वर पिश्रलताः है शरोर अधिकांश मोमवत्ती बनानेमे +योगः दोताहै। ए . केरोखीन में कर्बन का झशुं, अधिक रदने.से.... :. यदिं पर्याप्त परिमाणु में श्रोषजन नहीं रहें तो जलने में घुश्नां उत्न्न होता है | श्रतएव जब यह्‌ ¦ तेल प्रकाश उत्पन्न करने के लिये. प्रयोग होता है तब लौके चारों ोर चिमनी-रख दी जाती है जिससे काफ़ी. श्ोष जन, झधिक तादाद्‌ महवा खिच कु; लोको प्राप्त हो जाय । ऐसे लालरेनों में जहां बत्ती . पदले पहल . जब प्रकाश उत्पन्न ... लिये पसे तेली का व्यवहार आआरम छाग लगना पव मडकना कोर शरसाथाः थी । इससे इस तेलक प्रयेषण कदन दूर्भटनाओं से. _ रहित करने के लिये विशेष.कनून बनाने की आवश्यकता पड़ी । एसी... दुघटनाएं झंधघिक कु यह बेन्को नं से .चिलकर्त भिन्न पटार्श हे - गोलाक्रार दो पक पेसतीनल्ली रहनी चाहिये जिसके. द्य लौके भीतस भाग की तेरफ . शोषजन: सींचा जारके | हे शी है उन्हें पेटोलियम इंधर कहते है दोर बह नेक ५ । ू पदार्थीका घुलानेके लिये झधि कतर व्यवहारे श्रते : . है | दूसरे अंश जो &०° से१९०- शतांश पर इकट ` होते हैं. उन्हें गेसोलिन, पेट्रोलियम नेफथा झथवा प्मसे पुक्ारते हैं । यें. मोटर 'गाडियांकें. 1




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