प्राचीन भारतवर्ष की सभ्यता का इतिहास भाग - 2 | Prachin Bharatavarsh Ki Sabhyata Ka Itihas Dusara Bhag - 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
194
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अ ? |] इस काल का साहित्य | £
गोस्डस्ट्रकर तथा श्नन्य विद्वानों के मत से पाणिनि के पहिले हुआ है )
अपने पूष॑जो' के नाम को श्रन्धकार में डाल दिया है श्रीर हम को
उनके विषय में जो कुछ पता लगता है वह यास्क के ग्रन्थोसेही
लगता है | लोग यह बहुघा भूल करते हैं कि यास्क के ग्रन्थ को
“निरुक्त' कहते हैं । सायन लिखता हे कि निरुक्त एक ऐसे ग्रन्थ को
कहते हैं जिसमें थोड़े शब्द दिए हुए हो' । यास्क ने ऐसा पक पुराना
निरुक्त लेकर उसपर टीका लिखी है और यह टी काही उसका ग्रन्थ है।
कोलब्रूक साहब ने प्रत्येक चेद् के ज्योतिष पर भिन्न सिन्न ग्रन्थो
का उस्लेव कियाद श्रौर इनमें से पक को, जिसकी टीका भी है,
वे ऋग्वेद का ज्योतिष' कहते हैं । परन्तु प्रो फेसर मेक्समूलर साहब
ने पता लगाया है कि ये सब ग्रन्थ पक ही ग्रन्थ की मिन्न भिन्न
प्रतियां हं श्रौर उनका विश्वास है, कि यह ग्रन्थ सूत्रो' के समय
के उपरान्त बनाया गया था, यद्यपि उसमें जो सिद्धान्त श्रौर नियम
दिए हैं वे हिन्दू ज्यौतिष के सबसे प्रथम समय के हैं। उनका
प्रायोगिक उद्देश्य यह हे कि नक्तत्रो' के विषय में इतना ज्ञान हो जाय
जिसमे कि यज्ञो केकरनेक। समय नियत हो सके और धर्म
सम्बन्धी कार्यो के लिये एक पंचाङ्ग बन सक्र | शरतपव इस ग्रन्थ के
बनने का समय चाहे कितना हो पीछे का क्यों' न हो पर उसमें
भारतवर्ष के ऐतिहासिक काव्य काल के अर्थात् जब करि वेद संग्र
हीत करके ठीक किए गए थे उस समय के निरीक्षणो' का फल
दिया है और इसलिये ये उस समय के प्रमाण हैं जिनका कि सहज
मं तिरस्कार नहीं करना चाहिए |
उपरोक्त छः वेदांगों के सिवाय एक दूसरी श्रेणी के ग्रन्थ भी हैं
जो 'झचुक्रम' कहलाते हैं और ये भी सुत्रश्रन्थो से सम्बन्ध रखते हैं।
ऋग्वेद की अनुकमणी कात्यायन की बनाई हुई कही जाती है
और उसमें प्रत्येक सूक्त का पहिला शब्द, ऋचा की संख्या, उसके
बनानेवाले का नाम, छुंद और देवता का नाम दिया है। ऋग्वेद
की कई प्राचीनतम अनुक्रमणियां भी थीं परन्तु उन सव का स्थान
कात्यायन के अधिक पशं ग्रन्थ ने ले लिया है ।
यजुबेद की तीन श्रनुकमणियां है अथात् एक तो ऐब्रेय कृष्ण-
यजुबंद के लिये, दूसरी चरक के लिये श्र तीसरी माध्यन्दिनि
शुकलयजुबंद के लिये ।
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