हिंदी कहानी एक अन्तरंग परिचय | Hindi Kahani Ek Antarang Parichya

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Hindi Kahani Ek Antarang Parichya by उपेन्द्रनाथ अश्क - Upendranath Ashk

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कहानी कला-१ / १५४ मुग्ध बैठाये रखना श्रावश्यक था; इसलिए घटना के बाद घटना का वरँन करके वे श्रोताओं के कौतुहल को बढ़ाये जाते थे । पहले कया हुमा, यह सोचने का भ्रवकाद श्रोताशों को न मिलता । श्रागे क्या होगा, इसकी उत्सुकता बनी रहती । ज्यों-ज्यों कहानी बढ़ती, रहस्य भर भी गहरा श्रौर भी जटिल होता जाता, यहाँ तक कि जब कहानी समास होती, लोग 'वाह-वाह' कर उठते भर ऐसी उत्तम कहानी गढ़ने के लिए सुनाने वाले की प्रद्यंसा करते । बाद को जब कहानी लिखी जाने लगी तो उसका यह गुण वसे-का-वेसा वना रहा । हिन्दी मे कहानी की सबसे पहली पुस्तकें श्रपने अत्यन्त श्रपरिपवकव रूप में बैष्णवकाल, श्रर्थात्‌ १६वीं शताब्दी में गोकुलनाधकृत “चौरासी वष्णवन की वार्ता तथा “दो सौ वावन वैष्णवन की वार्ता के नाम से मिलती हैं । इनके बाद संवत्‌ १६८० (विक्रमीय) में जटमल ने 'गोरा-बादल की कथा' रची, जिसका धाधार एक ऐतिहासिक घटना थी । इसके बाद १९वीं दाताब्दी के प्रारम्भ तक गद्य में कोई पुस्तक नहीं मिलती । इसका यह मतलब नहीं कि उस समय घटनाएँ नहीं होती थी, या कहानी सुनने-सुनाने की रुचि न थी । कारण यह था कि लोग जो कुछ सुनना या सुनाना चाहते थे, काव्य द्वारा सुनना-सुनाना चाहते थे । “प्रेम-मार्गी सुफी-शाखा' के कवियों ने पद्य में ही कहानियाँ लिखी । जायसी का 'प्मावत” इसका उत्तम उदाहरण है । गद्य मे कहानी न लिखे जाने का दूसरा कारण यह भी था कि उस समय भ्राज की तरह छापेखाने की सुविधाएँ उपलब्ध न थी, इसलिए कहानी झपने साहित्यिक रूप मे सामने न श्रा सकी । जो भी हो, १६वी-१७वी दाताब्दी के बाद १९वी शताब्दी मे ही हिन्दी-गद्य को कुछ उत्तेजना मिली ।.... हिन्दी-गद्य के विकास का एक बड़ा कारर ब्रिटिश-राज्य की स्थापना थी । भ्रग्रेज-शासको ने यह अनुभव किया कि भारतीय भाषाश्ों का ज्ञान उनके लिए परमावदयक है । कलकर्ता में फोटे विलियम कॉलेज की स्थापना १७९१ में हो छुकी थी । इसी कॉलेज के कुछ श्रध्यापको को हिन्दी-गद्य में पुस्तकें लिखने के लिए प्रेरित किया गया । गद्य के विकास के परिणामस्वरूप कहानी की कुछ पुस्तकों का आाविर्भाव हुश्रा । इसी कॉलेज के पंडित लल्लुलाल जी ने, न केवल प्रेमसागर ही लिखा, वरन्‌ तीन कहानी ग्रन्थों--'बैतालपच्चीसी,' 'सिहासनवत्तीसी,” श्रौर 'माघोनल'--की भी रचना की । ये तीनों संस्कृत से अन्नुदित हैं । फ़ोटें विलियम कॉलेज के दूसरे शभ्रघ्यापक श्री सदल मिश्र थे । ये भी श्रारम्मिक गद्य के प्रतिष्ठापको में गिने जाते है। इन्होंने “'चन्द्रावती' या *नासिकेतोपाख्यान' नाम की कहानी-पुस्तक लिखी । यह भी संस्कृत से




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