खोए सो पाए | Khoye So Paye

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Khoye So Paye by आचार्य तुलसी - Acharya Tulsi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ज्ञातं तत्त्वे कः संसारः जरा मरण वेगेन वुज्क्ञमाणाण पाणिं 1 धम्मो दीवो पडट्ठा य गई सरणमुत्तम ॥। धम्मो मगल मुक्किट्ठ अ्हिसा सजमो तवो । देवा वि त नमसति जस्स धम्मे सया मणो । सतत प्रवादी पानी का स्रोत्त अपने साथ कु दूसरी चीजो को भी वहा- कर ले जाताहै। तीव्रगामी स्रोत को रोकना या उसमे प्रवाहित पदार्थो को निकाल पाना सहज काम नही है । इसी प्रकार जरा और मृत्यु का एक प्रवाह अनादिकाल से वह रहा है। आज तक वह कभी रुका ही नहीं । उस प्रवाह मे ससार के समस्त प्राणी वहते जा रहे है । वे चाहते है किं हम स्थिर हो जाए अथवा प्रवाह से एक ओर हटकर अपने स्वतन्त्र अस्तित्व को स्थापित करे, पर उन्हे कोई आधार नही मिल रहा है! इसलिए वे रुकना चाहकर भी रुक नही पा रहे हैं। प्रश्न हो सकता है कि उस प्रवाह मे कही रुकने के लिए आलब्बन है या नही ? आलम्बन तो है ही, पर है अत्यन्त सुक्ष्म । उसे पहचानकर पकड पाना भी एक जटिल कायें है । वह आलम्व है धमं । धर्मं इस केप्रवाह ससार मे बहते हुए प्राणियो के लिए दवीप है, प्रतण्ठि है, गति है और उत्तम शरण है। धर्म से बढकर ससार मे दूसरा कोई आधार नही है । अईत पुरुपो ने उस धर्म को सर्वेक्किष्ट मगल वताया है। धर्म क्या है ? उसके स्वरूप को अभिव्यक्त करते हुए कहा गया है-- अहिसा, सयम और तप यह त्रिवेणी-सगम धर्म है। अहिंसा का अर्थ है समता । अहिसा सवं भूतेषु समता प्राणी मात्र के प्रति आत्मौपम्य की




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