अपने आस - पास | Apne Aas - Pas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विभीत्स मौत मरना होगा ““प्रौर तद दन्दे की तरह मुझे भी यालियाँ मिलेंगी “मुम पर भी थूका जायेगा । मेरी लावारिस लाश खून सें लयपय सड़क पर पड़ी होंगी ”* भौर प्रसख्थ मठिखयाँ जिनभिता रही होगी” वया सचमुच यही होने चाल है मेरे साय! गया जो कु वन्ते के साथ हुंग्रा टै वह भविष्य मे भरे सय होने वाले हादसे की रिहसेल हैं * मैं कांप जाता हूँ यह सब सोचकर । पसीने से तर-वतर हों गया हूँ । मु लगता हू मेरे मन्दर का उम्ताद' या वांस जिसमे हरदम भ्ररड दं, टा प्रदम्‌ और निश्चिन्तता है, सहसा ही गुदा हो गया है । गुब्बारे में से हवा निर्ल जाती है बैमी ही स्थिति में अपने को पाता हूं । बया मैं जो जिंदगी जी रहा हूँ वह हकी री जिन्दगी नहीं * कया इस डिस्दगी का वुछ भर भी पये है ? में प्रद तक पैसे को ही जिन्दमी ममता रहा ईमा जो दिसी भी घिनौने तरोदे से बयो नहीं बमाया सपा हो । सेंद सेरी चर की दउण्डी-दाल बा सहारा लेरर सदा दो गया हूँ । मैं भी पर दृष्टि डालता हूँ, ्मरूय लोग भागते दौड़ने हुए । मैं भी इसमें एक हूँ जो धपनी जिन्दगी वो विसी लाश वी तरह दो रहा हूं । जीवन से दभी भी णाति प्राप्त नहीं की । मुभें याद नहीं भाता कि जीवन मे मैंते कभी कोई प्रब्दा वास शिया हो । भेरी पौव कै प्रपि परूम जाना एक मामूध बालकः ” सी सेट मेरी चर्च के साथ बने स्कूल में पढ़ने जाता था । माँ माथा बूमकर हहूल भेजंगी थी-- हैंदो को साणाएँ थी बहुत उसमे ””* कितने अच्छे थे वे दिन । सफेद चोगे में लिपटी ननू पैड्िंगा स्नेह से बानों में हाथ फेरती हुई बहती थी--पइियूज़ा ” ' मासूम बच्चे तुम भ्पने जीवन में सहान सान वनेत । फिर उसके होठ बुदबुदा उठते थे--मूठ मत बोलना, चौरी मत बरना ॥ 'बही सो गया मेरे बचयत का वह सूप धह मालूम रूप उमर इस पिदौने इंसान के रूप में बसे दि सित हो सपा । मुठ, फरेब, दुराबार “शराब” गालियों””मारपीट”” चाकू बाजी” दिरन्पाजिटिग” थे सब गहाँ से पा गये । कहीं सो गपा बह नन्‌ वा भ्रलौकिक दुभाएं देता चेहरा” ' । मेरी भाँसों से भसू उबत पढ़ हैं” मैं रो रहा है” मेरे भोतर रखा बोई सर्त पत्थर पिपल रहा है धीरे-धीरे । चारो भोर भीड़ ही भीइ है” मागते दौइते लोग भौर मैं रो रहा हूं । मैं छोड दूंगा सद शुद--पह पिनौना डीवन इन गे रपयो थी इदस यह मेरा निश्चय है । मैं सान बनू बहुत बुध सो छा हैं पर एवं दु्ध रहीं लोडगा--सोदे हुए को दटोरू था यमीने बी रोटी द्लिना मुख देनी {यौन भर जब उसूल होगे हो जीने से कितना मजा पाएगा । मुझे झब जस्दी से घर सौट अगा भरिए पौर ईडी दे पद में गिरगर मा मसाँगनी पाहिए। हैं नेडी मे घर बी पोर चत पहता हैं एक नये घहसास को सेबर । 1 जिन्दगी पु भर है ष




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