अस्तित्ववाद | Astitvavad

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Astitvavad by महावीर - Mahaveer

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इन्द्रिय-विषय-लेखन पद्धति ( गिशजा)€001०6162| 14९1106 } किमी मी वस्तु या दिपय के भ्रघ्ययत की प्रत्रिया, रीति झयवा विधान पद्धति है । पद्धति प्रध्येता के लक्ष्य ध्रौर भ्रध्येय-वस्तु के रूप- स्वरूप से भ्रनुशासित रहती है । यह लक्ष्य-वस्तु-सपिक्ष भर्यात्‌ लव्य प्रौर बस्तु भ्नुरूप होती है । यद्वि बस्तुपरक सत्य की प्राप्ति लदय है, तो बौदिक पदति (८९६६०००1 एष्व्‌ } का सहाय तेना भ्रनिवायं है। ऐसी परिस्थिति मै मस्हिष्छ (ग्रष्येना) चौर वस्तु (ध्येय) मे त स्थापित होता है प्रौर वस्तु भस्तिप्क से वहिप्कृत हो जाती है । वस्तु से ऐन््रिय, मान- सिक श्ौर व्यक्तिगत संगता 'भौर सापेधषता के स्पान पर बौद्धिक निस्सगता श्रीर्‌ लिरयेशता उगजती है । दस पदति का एकं पूवे धारणा { णपण्त ण पफल्छड) से प्रारम्भ होता है । फिर झांगमन, निगमन, वर्णन, प्रषोग, द्टात्मकतः श्रादि एकानेक प्रक्रिया, उपकरणी आर साधनों द्वारा वस्तु बी एक परिभाषा प्राप्त की जाती है भयवा निष्कर्ष निकाला जाता है, जो सामान्य, सार्वमौम, सार्व कालिक शौर सार्वेदेशिक सार ( ९१८००) के रप में होता है। विज्ञान श्रौर शधिकांश दुद्धिसापेकष प्रत्ययवादी ( 1प९८७)5४० } दर्शनों में इसी पद्धति का प्रयोग किया जाता रहा है । श्रात्मपरक सत्य की प्राप्ति के लिए सहजानुमुतिनिप्ठ ( 1घोेठणओ ) पर्दधात काम में ली जाती रहो है । इस पद्धति में किसी विशेष प्रक्रिया का श्रनुसरण नहीं किया जाता और थह प्री तरह व्यवित-सापेक्ष होती है । इसमें कोई पूर्व घारणा नहीं होती । सहजानुभुति ही घारणा भौर निष्कर्ष का रूप धारण कर लेती है । ये मिष्कप सामान्य (ट्लााथ ) और सावंमीम ( पपा एटा! ) होते हुऐ भी बंज्ञानिक




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