हिंदी नाटक साहित्य का इतिहास | Hindi Natak Sahitya Ka Itihaas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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का इतिहास है । ( ४ ) आशावादी रहे हैं; अतएव इन प्रवृत्तियों की अभिव्यंजना हमारे नाटकों में स्वाभाविक है। जीवन की दुखान्तवादिता वतमान युग की देन है । हम उस प्रभाव से.बच नहीं सके हैं । अतरव यही उचित है कि जीवन के ग्रदर्शन-साधन नाटक उसके साहित्य को हम केबल एक ही दृष्टिकोण से न देख कर उसे युग के वातावरण में देखें और तब कोई परिणाम निकालें । नाटक साहित्य को कसने के लिए यहीं कसौटी रखी गई है । प्रस्तुत इतिहास के परिणाम इसी आधार का फल हैं । ' हिन्दी नाटकों का झारंभ आलोच्यकाल में लिखे गए हिन्दी नाटकों के दो रूप इस समय मिलते हैं--साहित्यिक आर रंगमंचीय । पहली श्रेणी के नाटक अधिकांश में काव्यत्व से भरपूर हे और दूसरे वर्ग में रंगमंचीय आावश्यकताश्यों की पूर्ति पर ध्यान अधिक दिया गया है । आगे चलकर भी ये दोनों धारायें प्रथक्‌ प्रथकू रूप से वेगवती होकर हमारे साहित्य को आम्ाचित करती रहीं । श्यतणव हिन्दी नाटक साहित्य का इतिहास वास्तव में इन्हीं दोनों घारा जि प्रश्न हो सकता है कि रंगमंचीय नाटकों को साहित्य में स्थान क्यों दिया जाय ? झारंभ में दही यह संकेत कर दिया गया है कि नाटक दृश्य-काव्य है और अभिनेय होना उसका आवश्यक _ लचण है । इस दृष्टि से आदर्श कहे. जाने वाले नाटक तो वहीं. होंगे जिन में दोनों बतंमान हों । परन्तु उपलब्ध साहित्य में मटर पद




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