मृत्यु के बाद | Mratyu Ke Baad
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8.97 MB
कुल पष्ठ :
152
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
गुरुनाथ जोशी - Gurunath Joshi
No Information available about गुरुनाथ जोशी - Gurunath Joshi
शिवराम कारंत - Shivram Karant
No Information available about शिवराम कारंत - Shivram Karant
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)का एक टुकड़ा दिखाया था जिस पर आपका पता लिखा था । तब उन्हें तेज बुखार था। मैंने एक डॉक्टर को बुला भेजा तो उसने कहा कि इन्हें तुरंत अस्पताल पहुंचाइए । दो-तीन दिनों से वह सोते ही रहे थे। कमरे का दरवाजा बंद था। मैंने ही उसे खोला और उनकी हालत देखी तो जी बड़ा घबराया । उनमें बोलने की शक्ति भी नहीं रह गई थी बस अपनी दुर्बल उंगलियों से मेज पर रखा कागज का पुरजा उन्होंने मुझे दिया । उस पर आपका पता था। हमने आपको तार भेज दिया। अब आप आ गए हैं आप ही संभालिए मैं दंग रह गया। अस्पताल की तरफ दौड़ा । मेरे अस्पताल पहुंचने के कुछ ही देर पहले उनका शव मुर्दाघर में रख दिया गया था। मेरा आना न आने जैसा हुआ और वहां रहना भी न रहने के समान । फिर भी खड़ा रहा आधा घंटा । किसी भी तरह की यातना-पीड़ा से मुक्त उनके शांत और सोये हए बूढ़े चेहरे को देखता हुआ । बहुत सोचने-विचारने का समय अब नहीं था । मुझसे पूछा गया आगे की व्यवस्था करनी चाहिए न? जीवित लोगों की जिम्मेदारी आदमी के मरने के फौरन बाद ही खत्म नहीं हो जाती -यह सोचते हुए बंबई में रहने वाले कुछ मित्र याद हो आए । अस्पताल से बाहर आया और टेलीफोन करके एक घनिष्ठ मित्र को बुला लिया । उनकी सहायता से मित्र का अंतिम संस्कार पूरा कर डाला । पर अब आगे? मुझे उनके कमरे पर लौटना चाहिए कि नहीं? मैं कौन हूं? वह कौन थे? यह सच है कि मैं उनका मित्र हूं। अभागा भी हूं। किंतु जो कुछ वह छोड़ गए उस पर मेरा हक कया है? यही सब सोचता रहा । बंबई वाले मित्र ने कहा ऐसी कोई बात नहीं है । वहां जाइए । उनके कमरे में जो सामान है उसे लेकर उनके भाई-बांधव या संबंधियों का पता लगाकर सामान सॉंपने तक की जिम्मेदारी आपकी है। आप पर इतना विश्वास न होता तो आपका नाम वह सुझाते ही क्यों? मित्र को लेकर मैं उनके कमरे में गया । पड़ोसियों की अनुमति से उस एक दिन के लिए कमरे और सामान का स्वामी मुझे बनना पड़ा। वह बंबई के मालाबार हिल पर रहते थे। आप लोग शायद इतना-भर जानते हैं कि मालाबार हिल पर रहने वाले सब अमीर हैं । किंतु अमीर इमारतों की अगल-बगल सैकड़ों झोंपड़ियां भी वहां हैं। एक समय में जो अमीरों के मकान थे वे अब जीर्ण होकर झोंपड़ियों की भांति दिखाई देते हैं। मेरे मित्र ऐसे ही एक मकान में रहते थे। बैक-बे समुंदर से .. सटा हुआ एक छोटा-सा पिछवाड़ा है एक पुराने चाक से लगाकर आउट-हाउस के नमूने पर वह बनवाया गया था । निचली मंजिल पर दूकानें और पिछले हिस्से में एक गरीब परिवार । वह दुमंजिला मकान काफी बड़ा है। एक छप्पर है जिसका मुंह समुद्र की ओर है । उसके अगले भाग में दो परिवार रहते थे। इसमें सीढ़ियों के पास ही मेरे स्वर्गीय मित्र यशवंत राव का निवास था। तीन कमरों का । बंबईवासियों सो भी मध्य-वर्ग के लोगों के लिए ऐसा निवास दुर्लभ है । उसके कमरे भी काफी बड़े धे-हवादार और रोशनी से भरपूर । उसके ग
User Reviews
No Reviews | Add Yours...