श्रीकृष्ण कथा | Shrikrishna Katha
श्रेणी : पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
166
श्रेणी :
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No Information available about चतुर्वेदी द्वारका प्रसाद शर्मा - Chaturvedi Dwaraka Prasad Sharma
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्रीमदुभागवत के देशमस्कन्घ से |
देव भी कगे । हे महदाभाग ! तुम्हारे इस पुत्र
के गुण शऔर कर्म” के अ्रनुरुप श्रनेक नाम हैं !
उनको मैं ही जानता हूँ । सामास्य जत नहीं
जानते, इस बालक दवारा तुस्दास कल्याण होगा
ससे गोप भौर गोौदों को बड़ा ग्रानन्द प्राप्त
होगा | तुम्हारे अनेक सडटूट इसकी सददायता
से दूर हो जाएँगे । हे नन्द | यह तुम्हारा पुत्र
गुण, लक्ष्मी, कीत्ति' श्र प्रभाव में चारायण के
वैश्य है । अतः साधधानता पूर्वक तुम इसकी
रक्षा करो ।
यह कह कर शर्गाचार्यजी प्रपने घर लौट
गये। गर्गाचायं के मुख से दोनों पुत्रों का भावी
फल सुन नन्द् यशोद दोनें बहुत प्रस्न हुए ।
थोडे ही दिनों वाद कृष्ण और वलभ्
दोनों भाई घुटनों चलने शरीर चालकीड़ा करने
लगे । कुछ दिनों बाद दोतों बालक खड़े खड़े
चलने लगे ।
एक वार बलभद्र दि वावा ने यशोदा
से जाकर कहा कि देखो छष्॒ ते श्राज मिट्टी
खा ली है। यशोदा ने ष्ण क हाथ पकड़े
लिया सर पुत्र के हिंत के लिये डाटा । उस
समय श्रीरृष्ण कौ भय से परा चर्च चित्तवन
भ्रीर भोला मुख बड़ा ग्रच्छा लगता धा।
यशोदा कहने लगीं--क्यों रे होठ ! तूने छिप
कर मिट्टी क्यों खा ली ? देख तेरे साथी सद्मी
श्रौर तेरा भाई ही कया कट रहै दै ।
ध्रीकृष्द-मैया ! मैंने ते मिंद्ी बिट्टी खाई
नहीं थे सथ शे शूट मूढं दौ दोष लगति है
यदि तुचे मेरे कहने का विश्वास न ष्टो तो मेसं
मुंद॒ देख ले |
यशोदा-श्रच्छा] तू बड़ा सलघारी है तो
तो अपना मुंह ।
यह सुन घ्र सेल करने के श्रर्थ, मनुष्य
चपुधारी साक्तात् पता भगवान्.शरीकृष्ण ने
} अपना भुल सोल दिया । मुख में रीकृष्ण नै
चैद्दो भुवन चराचर, ताय, पृथिवी, दैव समी
दिखला दिये! सारराश यह कि माता को
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श्रीकृष्ण ने श्रपना चिराद् रूप श्रपने मुख के
भीतर दिखला दिया । उसे देख यशोदा का बड़ा
श्राइचय हुमा श्रौर वे मन ही मन कहने क्षगीं
कि यह है भी क्या ? क्या मुझे भ्रम हो गया है
या यह हरि की माया है या मेरे इस पुत्र का
कोई न समकने योग्य ठेभ्वयं प्रताप है। इस
प्रकार यशोदा का चिस्ताकुल्त देख श्रीकृष्ण ने
पुत्रस्नेहरूपी प्रवल माया फिर फैला दी | तुरम्त
हो यशोदा सब भूल गयीं श्र हृदय में पुत्र
स्नेह उमड़ भाया । पुत्र को गोद में ढे वे उसे
फिर दुलारने लगीं ।
म्रीकृष्ण का उलूखल बन्धन ।
एक दिन धर कौ टहलनी अल्य कमरों मेँ
लगी हुई थौ! इससे नव्दरानी यशोदा खयं
दही विरेजे भगं । वियते सम्रय वे कृष्ण की
वाल लीलाओं को गाती जाती थीं । इतने में
श्रीसृष्ण ने भाकर मथनौ एकड़ ली और: दही
न मथते दिया । तब यशोदा ने पुत्र को गोद में
लेकर दूध पिलाना आरम्भ किया | इतने में
यदे पर रला दूध उफनने लगा । अतएव कृष्ण
को छोड़ आप दूध उतारने को दौडी । श्रीकृष्ण
चन्द्र ते भर पेट दूध नहीं पी पाया था । अतः
वे कु हुए श्र उन्होंने पा्त पड़े ठे सै
दूधेड़ी फोड़ डाली घर रोने का बहाना कर वे
वहाँ से चल दिये। फिर कोटे में जा भरर षहा
रखा मक्खन अकेले भ्रकेखे खाने लगे । यशोदा
ने दूध को चू से उतार कर रख दिथा शरीर
अपनी दृघेट्ी के पास आकर देखा ते दधेडी
फूटी पड़ी पाई भर श्रीकृष्ण वहाँ नहीं है।
तथ तो वे ज्ञान गयीं कि यह सारी करतूत उन्हीं
के पुत्र की है। यदद जान कर वे हँसने लगों ।
यशोदा ने घूम कर कोड में जा देखा तो श्रीकृष्ण
को उलूखल ऑंधा कर और उस पर खड़े होकर
मक्खन खाते पाया । मे खर्य खाते ही न थे पर
वानरो को भी दु रदे थे। साथ ही कै
देख न ढे इससे थे बार बार भपने चारों ओर
देखते भी जाते थे। यदद देख यशोदा चुपके
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